________________
।
[ गोम्मटसारं औषका गारा ५३७
जीव के प्रदेशनि का चंचल होना, सो भाव लेश्या है। तहां परिणाम का चंचल होना कषाय है। प्रदेशनि का चंचल होना योग है। तीहिं कारण करि योग कपायनि करि भाव लेश्या कहिए है। तातै भाव लेश्या का साधन मोहनीय कर्म का उदय था क्षयोपशम वा उपशम वा क्षय जानना । इति साधनाधिकारः ।
प्रागें संख्याधिकार छह गायानि करि कहैं हैंकिण्हादि-रासिमावलि-असंखभागेण भजिय पविभत्ते। हीणकमा कालं या, अस्सिय दवा दु भजिदया ॥५३७॥
कृष्णाविराशिमावल्पसंख्यभागेन भवस्या प्रविभक्त ।
होनक्रमाः कालं वा, प्राश्रित्य द्रव्यारिण तु भक्तव्यानि ॥५३७॥ टीका - कृष्णादिक अशुभ तीन लेश्यावाले जीवनि का प्रमाण है, सो तीन शुभ लेश्यावालों का प्रमाण कौं संसारी जीवनि का प्रमाण मैं स्यों घटाए, जितना रहे तितना जानना; सो किंचिदून संसारी राशिमात्र भया । ताकौं प्रावली का असंख्यातवां भाग का भाय दीजिए, तहां एक भाग बिना अयशेष बहुभाग रहे, तिनके तीन भाग करिए, सो एक-एक भाग एक-एक लेश्यावालों का समान रूप जानना । बहुरि जो एक भाग रह्या, ताकौं पावली का असंख्यातवां भाग का भाग देइ, तहां एक भाग जुदा राखि, अवशेष बहुभाग रहें, सो पूर्व समान भागनि विर्षे जो कृष्णा लेश्यावालों का वट (हिस्सा) था, तिसविर्षे जोडि दीए, जो प्रमाण होइ, तितने कृष्ण लेश्यावाले जीव जानने । बहरि जो वह एक भाग रहा था, ताकौं प्रावली का असंख्यातवा भाग का भाग देइ, तहां एक भाग कौं जुदा राखि, अवशेष बहुभाग रहै, ते पूर्व समान भाग विर्षे नील लेश्यावालों का बट था, तिसविर्षे जोडि दीए, जो प्रमाण होइ, तितने नील लेश्यावाले जीव जानने । बहरि जो वह एक भाग रहा था, सो पूर्वे समान भाग विर्षे कपोत लेश्यावालों का वट था; तिसविर्षे जोडे, जो प्रमाण होइ, तितने कपोत लेश्यावाले जीव जानने । जैसें कृष्णलेश्यादिक तीन लेश्यावालों का द्रव्य करि प्रमाण कह्या, सो क्रमतें किछू किछू घटता जानना ।
अथवा काल अपेक्षा द्रव्य करि परिमाण कीजिए हैं । कृष्ण, नील, कपोत तीनों लेश्यानि का काल मिलाए, जो कोई अंतर्मुहुर्त मात्र होइ, ताकौं प्रावली का असंख्यातवां भाग का भाग दीजिए, तहां एक भाग कौं जुदा राखि, अवशेष बहुभाग
E
T
-
waHAIRA RAINRAKiwakarmaavNET
in-Paantivanidiodamak