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গুঞ্জঙ্গি আবা।।
टीका - तिन मध्यम अंशनि ते अयशेष रहैं, जे लेश्यानि के अठारह अंश, ते च्यारि गति विर्षे गमन को कारण हैं। मरण इनि अठारह अंशनि करि सहित होइ, सो मरण करि यथायोग्य गति की जीव प्राप्त हो है। तहां शुक्ल लेश्या का उत्कृष्ट अंश करि सहित मरे, ते जीव सर्वार्थसिद्धि नामा इद्र के विमान को प्राप्त हो हैं ।
अवरंसमुदा होंति, सदारदुर्ग मज्झिमंसगेण मुथा । आरपदकप्पादुरि, सव्वट्ठाइल्लगे होंति ॥५२०॥
अवरांशमृता भवन्ति, शतारहिके मध्यमांशकेन मृताः ।
मानतकरूपादुपरि, सर्वार्थादिमे भवन्ति ॥५२०॥ टीका- शुक्ल लेश्या का जघन्य अंश करि मरें, ते जीव शतार --सहस्रार स्वर्ग विर्षे उपज हैं । बहुरि शुक्ल लेश्या का मध्यम अंश करि मरे, ते जीव मानत स्वर्ग के ऊपरि सर्वार्थसिद्धि इद्रक का विजयादिक विमान पर्यंत यथासंभव उपजें हैं ।
पम्मुक्कस्संसमुदा, जीवा उवजांति खलु सहस्सारं । अवरंसमुदा जीवा, सणक्कुमारं च माहिवं ॥५२१॥
पद्मोत्कृष्टांशमृता, जीवा उपयान्ति खलु सहस्रारम् ।
अवरांशमृता जीवाः, सनत्कुमारं च माहेन्द्रम् ।।५२१॥ टीका -- पद्म लेश्या का उत्कृष्ट अंश करि मरे, जे जीव सहस्रार स्वर्ग कौं प्राप्त हो हैं । बहुरि पद्म लेश्या का जघन्य अंश करि मरें, ते जीव सनत्कुमार - माहेंद्र स्वर्ग कौं प्राप्त हो हैं।
मज्झिमश्र सेरण सुदा, तम्मझ जांति तेउजेठमुदा । साणक्कुमारमाहियंतिमचक्किदसेदिम्मि ॥५२२॥
मध्यमांशेन मृताः, तम्मध्यं याति तेजोज्येष्ठमृताः ।
सानत्कुमारमाहेन्द्रान्तिमचक्रेन्द्रधेष्याम् ।।५२२॥ टीका ---- पन लेश्या का मध्यम अंश करि मरे, ते जीव सहस्रार स्वर्ग के नीचें पर सनत्कुमार -- माहेन्द्र के ऊपरि यथासंभव उपजै हैं । बहुरि तेजो लेश्या का