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{ गोम्मसार जयकाण्ट गाया ४६१-४१२-४६३
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दोऊनि का कार्य च्यारि प्रकार बन्ध कहा है। योगनि तै प्रकृत्ति बन्ध पर प्रदेश बन्ध कह्या है । कषायनि त स्थिति बन्ध भर अनुभाग बंध कया है । तिसही कारण कषायनि का उदय करि अनुरंजित योगनि की प्रवृत्ति, सोई है लक्षण जाका जैसे लेण्या करि च्यारि प्रकार बंध युक्त दी है।
आगे दोय गाथानि करि लेश्या का प्ररूपण विर्षे सोलह अधिकार कहै हैंणिदेसवण्णपरिणामसंकमो कम्मलक्खणगदी य । सामी साहणसंखा, खेत्तं फासं तदो कालो ॥४६॥ अंतरभावप्पबहु, अहियारा सोलसा हवंति त्ति । लेस्साण साहणठं, जहाकम तेहि वोच्छामि ॥४६२॥ जुम्मम् ।
निर्देशवर्णपरिणामसंक्रमाः कर्म लक्षणमत्तयश्च । स्वामी साधनसंख्ये, क्षेत्र स्पर्शस्ततः कालः ॥४९॥ . अंतरभावारुपबहुत्वमधिकाराः षोडश भवतीति । ... लेश्यानां साधनार्थ, यथाक्रम तैर्वक्ष्यामि ।।४९२॥युग्मम्।।
टीका - १ निर्देश, २ वर्ण, ३ परिणाम, ४ संक्रम, ५ कर्म, ६ लक्षण, ७ मति, ८ स्वामी, ६ साधन, १० संख्या, ११ क्षेत्र, १२ स्पर्शन, १३ काल, १४ अंतर, १५ भाव, १६ अल्प बहुत्व ए सोलह अधिकार लेश्या के भेदसाधन के निमित्त हैं । तिन करि अनुक्रम ते लेश्यामार्गरणा को कहै हैं ।
किण्हा णीला काऊ, तेऊ पम्मा य सुक्कलेस्सा य । . लेस्साणं गिद्देसा छच्चेव हवंति णियमेण ॥४६३॥
कृष्णा नीला कापोता तेजः पद्मा च शुक्ललेश्या च ।
लेश्यानां निर्देशाः, षट् चैव भवंति नियमेन ॥४९३।। टीका - नाम मात्र कथन का नाम निर्देश है । सो लेश्या के ए छह नाम हैं - कृष्ण, नोल, कपोत, पीत, पद्म शुक्ल असे छह ही हैं । इहां एक शब्द करि तो नियम आया ही, बहुरि नियमेन अंसा कह्या, सो नैगमनय करि छह प्रकार लेश्या है । पर्यायाथिक नय करि असंख्यात लोकमात्र भेद हैं, जैसा अभिप्राय नियम' शब्द करि जानना । इति निर्देशाधिकारः ।
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