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गोम्मटसार जीवफाड गाया ४६७.४६:-YEE टीका - मारकी सर्व कृष्ण वर्ण ही हैं। बहरि कल्पवासी देव जैसी उनके भावलेश्या है, तैसा ही वर्ण के धारक हैं। बहुरि भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिषी देव अर मनुष्य पर तिर्यंच पर देवनि का विक्रिया ते भया शरीर, ते छहौं वर्ण के धारक हैं । बहुरि उत्तम, मध्यम, जघन्य भोगभूमि संबंधी मनुष्य, तिर्यंच, अनुक्रम ते सूर्य सारिखे पर चंद्रमा सारिखे अर हरित वणं के धारक हैं।
बावराऊतक, सबकाताय वाङकायाणं । मोमुत्तमम्गवण्णा, कमसो अव्वत्तवण्णोय ॥४६७ . .
बाथराप्तैजसौ, शुक्लतेजसौ च वायुकायानाम् । ..
गोमूत्रमुद्गवर्णाः क्रमशः अव्यक्तवाश्च ॥४६७॥ टोका - बादर अकायिक शुनल गया है । वादार तेज कायिक पीतवर्ण है । बादर वात कायिकनि विर्षे धनोदधि वात तो गऊ का मूत्र के समान वर्ण को धरै है। घनवात मूगा सारिखा वर्ण धरै हैं । तनुवात का वर्ण प्रकट नाहीं, अव्यक्त वर्ण है ।
सम्वेसि सुहमाणं, कावोदा सव्य विग्गहे सुक्का । सब्दो मिस्सो बेहो, कबोदधाणो हवेणियमा ॥४६॥
सर्वेषां सूक्ष्माना, कापोताः सर्वे विग्रहे शुक्लाः ।
सर्वो मिश्रो बेहः, कपोतवों भवेनियमात् ॥४९।। टीका - सर्व ही सूक्ष्म जीवनि का शरीर कपोत वर्ण है । बहुरि सर्व जीव विग्रहगति विर्षे शुक्ल वर्ण ही हैं। बहुरि सर्व जीव अपने पर्याप्ति के प्रारम्भ का प्रथम समय से लगाय शरीर पर्याप्ति की पूर्णता पर्यंत जी अपर्याप्त अवस्था है, तहां कपोत वर्ण ही है, असा नियम है। जैसे शरीरनि का वर्ण कह्या, सो जिसका जो शरीर का वर्ण होइ, तिसके सोई द्रव्य लेश्या जाननी । इति वर्णाधिकार।
प्रागै परिणामाधिकार पंच गाथानि करि कहैं हैं
लोगाणमसंखेजा, अवयाणा कसायगा होति । तत्य किलिट्टा असुहा, सुहाविसुद्धा तदालावा ४६६॥