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माया
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५८. ]
। गोम्नहसार जोधका गाया ४५१ टीका - पल्यं के असंख्यात भाग करिए, तामें एक भाग प्रमाण संयमासंयम का धारक जीव द्रव्यानि का प्रमाण हैं । बहुरि ए कहे जे छही संयम के धारक जीव, तिनका संसारी जीवनि का प्रमाण में स्यो घटाए, जो अवशेष प्रमाण रहै; सोई असंयमी जीवनि का प्रमाण जाननी ।
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इति श्री प्राचार्य नेमिचद्रं विरचित गोम्मटसार द्वितीयमाम पंचसंग्रह मेंथ की जीवतत्वदीपिका नाम संस्कृत टीका के अनुसारि सम्यग्ज्ञान चंद्रिका नामा भाषाटीका विर्षे जीदकाण्ड विष प्ररूपित बीस प्ररूपस्या लिनिविर्षे संयममार्गणा प्ररूपणा है नाम जाका असा
तेरा अधिकार संपूर्ण भया ॥१३॥
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