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सम्यशामचन्द्रिका भाषाटीका
[ ५७ टीका - सम्यग्ज्ञान पांच, तिनिकार सयुक्त जीवनि का परिमाण किछ अधिक केवलज्ञानी जीवनि का परिमाण मात्र, सो सर्व जीवराशि का परिमारण विर्षे घटाएं, जो अवशेष परिमाण रहै, तितने कुमतिज्ञानी जीव जानने । बहुरि तितने ही कुश्रुतज्ञानी जीव जानने ।
इति प्राचार्य श्रीनेमिचंद्र विरचित मोम्मटसार वित्तीय नाम पंचसंग्रह ग्रंथ की जीक्तस्वादीपिका नाम संस्कृतटीका के अनुसारि सभ्यरज्ञानमंद्रिका नामा इस भाषा टीका विष जीवकांड विर्ष प्ररूपित जे बीस प्ररूपणा, तिनि विष ज्ञानमार्गणा प्ररूपमा नामा
वारह्वां अधिकार संपूर्ण भया ।।१२॥
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