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[ गोम्मटसार जोधकाण्ड पाया ४६६-४७०२४७१ टोका - बहुरि यथाख्यात संयम है; सो निश्चय करि मोहनीयकर्म के सर्वथा उपशम ते वा क्षय से हो है। जैसे जिनदेवनि करि कह्या है ।
तदियकसायुदयेण य विरदाविरदो गुणो हवे जुगवं । . बिदियकसायुदयेण य, असंजमो होदि णियमेण ॥४६॥
सृप्तीयकषायोदयेन च, विरताविरतो गुणो भवेयुगपत् ।
द्वितीयकषायोदयेन च, असंयमो भवति नियमेन ॥४६९॥ टोका - तीसरा प्रत्याख्यान कषाय का उदय करि युगपत् विरत • अविरतंरूप संयमासंयम हो है । जैसें तीसरे गुणस्थान सम्यक्त्व - मिथ्यात्व मिले ही हो है। तैसें पंचमगुणास्थान विर्षे संयम - असंयम दोऊ मिश्ररूप हो हैं । ताते यहु मिश्र संयमी है । बहुरि दूसरा अप्रत्याख्यान कषाय के उदय करि असंयम हो है । असे संयम सार्गणा के साल भेद कहे।
संगहिय सयलसंजमभेषजममणुतरं दुरवगम्म। जीवो समुष्पहतो, सामाइयसंजनो होदि ॥४७०॥
संगृह्य सकलसंयममेकयममनुत्तरं दुरवगम्यम् ।
जीवः समुदहन, सामायिकसंयमो भवति ।।४७०॥ दीका - समस्त ही व्रतधारणादिक पंच प्रकार संयम कौं संग्रह करि एकयम कहिए में सर्व सावध का त्यागी हौं; असा एकयमं कहिए सकल सायड का त्यागरूप अभेद संयम; सोई सामायिक जानना। : कैसा है सामायिक ? अनुत्तरं कहिए जाके समान और नाही, संपूर्ण है । बहुरि दुरवगम्यं कहिए दुर्लभपर्ने पाइए है, सो असें सामायिक कौं पालता जीव सामयिक संयमी हो है।
छेत्तण य परियायं, पोरारणं जो ठवेइ अप्पाणं । पंचजमे धम्मे सो, छेदोवदवावगो जीवो ॥४७१॥२
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१. षट्खंडागम-धवला पुस्तक १, पृष्ठ ३७४, गाथा सं. १८७ : २. षटूखंडागम-घवला पुस्तक १, पृष्ठ ३७४, गाथा सं. १८६ ।