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सम्याज्ञानचन्द्रिका मावाटीका ]
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विवसोपचय के परमाणू न मिलाइए, असे ते अवधिज्ञानावरण के परमाणू एकत्र स्थापने । बहुरि इस अवधिज्ञानावरण के परमाणूनि का प्रमाण को एक बार ध्रुवहार का भाग दीजिये; तब उस क्षेत्र के प्रदेशनि का परिमाण में स्यों एक घटाइए, बहुरि एक बार ध्रुवहार का भाग देतें, एक भाग विर्षे जो प्रमाण आया, ताकौं दूसरा ध्रुवहार का भाग दीजिए; तब तिस प्रदेशनि का परिमारण में स्यों एक और घटाइए। बहुरि दूसरा ध्रुवहार का भाग देते एक भाग विर्षे जो प्रमाण रहवा ताकौं तीसरा ध्रुवहार का भाग दीजिए, तब तिस प्रदेशनि का परिमाण में स्यों एक और घटाइए । एसें जहां ताई सर्व क्षेत्र के प्रदेश पूर्ण होइ; तहां ताई ध्रुवहार का भाग देते जाईये देते-देते अंत के विर्षे जो परिमाण रहै, तितने परमाणू का सूक्ष्म पुद्गल स्कंघ जो होइ, ताको सौधर्म -ऐशान स्वर्गबाले देव अवधिज्ञान करि जाने हैं। इससे स्थूल स्कंध को तो जाने ही जानें । असें ही सानत्कुमार - माहेंद्रवालों के धनरूप चारि राजू प्रमाण क्षेत्र के प्रदेशनि का जो प्रमाग तितनी बार अवधिज्ञानावरण द्रव्य कौं ध्रुवहार का भाग देते देतें जो प्रमाण रहै, तितने परमाणूनि का स्कंध को अवधिज्ञान करि जाने है । जैसे सबनि के अवधि का विषयभूत क्षेत्र के प्रदेशनि का जो प्रमाण होइ, तितनी बार अवधिज्ञानावरण द्रव्य कौं ध्रुवहार का देते देतें जो प्रमारग रहै, तितने परमाणुनि का स्कंध की ते देव अवधिज्ञान करि जाने हैं । वहां ब्रह्म - ब्रह्मोत्तरबालों के साठा पांच राजू, लांतव • कापिष्ठवालों के छह राजू, शुक्र - महाशुक्रवालों के साढा सात राजू, शतार - सहस्रारवालों के आठ राजू, प्रान्त - प्राणतवालों के साढा नव राजू, पारण - अच्युतवाली के दश राजू, अधेयकबालों के ग्यारह राजू, अनुदिश विमानवालों के किछु अधिक तेरह राजू, अनुत्तर विमानवालों के किछु घाटि चौदह राज क्षेत्र का परिमाण जानि, पूर्वोक्त विधान कीएं, तिनि देवनि के अवधिज्ञान का विषयभूत द्रव्य का परिमाण पावै है ।
सोहम्मीसाणाणमसंखेज्जाओ हु वस्सकोडीओ।। उपरिमकप्पचउक्के, पल्लासंखोज्जभागो दु ॥४३५॥ तत्तो लांतवकप्पप्पहुवी सम्वत्थसिद्धिपेरंतं । किंचूणपल्लमेत्तं, कालपमारणं जहाजोग्गं ॥४३६॥ जुम्मं । . सौधर्मशानानामसंख्येया हि वर्षकोटयः ।
उपरिमकल्पचतुष्के, पल्यासंख्यासभागस्तु ॥४३५॥