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[ गोम्मटसर वडा ४३
स्नेह के दोय, तीन यादि भेदनि का प्रभाव है। तीहि करि ताके निमित्त तें हुई जो आलापति की बहुत संख्या, सो न संभव है । यातें दिन तीनों स्थानकनि विषै स्थापे अंक, तिन विषे नष्ट उद्दिष्ट तू जानि ।
भावार्थ - निना, स्नेह का तो एक-एक भेद ही है । सो इनकी तौ सर्वभंगनि fa पलटन नाहीं । तातें इनिकों तो कहि लेने । श्रर अवशेष तीन प्रमादनि का तीन पंक्ति रूप यंत्र करना । तहां ऊपरि की पंक्ति विषें पंच कोठे करने । तिन विषै क्रम स्पर्शन आदि इंद्रिय लिखने । पर एक, दोय, तीन, च्यारि, पांच ए अंक लिखने । बहुरि ताके नीचली पंक्ति विषै व्यारि कोठे करने, तिन विषै क्रम क्रोधादि कषाय लिखने । अर बिंदी, पांच, दश, पंद्रह ए अंक लिखने । बहुरि ताके नीचली पंक्ति विषे च्यारि कोठे लिखने, तहां स्त्री आदि विकथा क्रम तें लिखनी । अर बिंदी, बीस, चालीस, साठ ए अंक लिखने ।
स्पर्शन १
क्रोध •
स्त्री
0
रसन २
मान ५
भक्त २०
प्राण ३
माया १०
राष्ट्र ४०
चक्षु ४ लोभ १५
ग्रव ६०
तहां नष्ट का उदाहरण कहिए
जैसे पैंतीसवां आलाप कैसा है ?
श्रोत्र ५
इहां कोऊ नष्ट बू तो जेथवां प्रमाद भंग पूछ्या सो प्रमाण तीनों पंक्ति fai जिन-जिन कोठेfन के अंक जोड़े होंइ, तिन तिन कोठेनि विषे जो-जो इंद्रियादि लिखा होइ, सोन्सो तिस पूछया हूवा आलाप विषे जानने । बहुरि जो उद्दिष्ट बू तौ, जो आलाप पूछा, तिस आलाप विषै जो इंद्रियादिक ग्रहे होंइ, तिनके तीनों पंक्तिनि के कोठेनि विषै जे-जे अंक लिखे होंइ, तिनकों जोड़ें जो प्रमाण होइ, तेथवां सो आलाप जानना
ऐसा पूछें इंद्रिय, कषाय, विकथाति के तीनों पंक्ति संबंधी जिन-जिन कोठानि के अंक वा शून्य मिलाएं, सो पैंतीस की संख्या होइ, तिन-तिन कोठानि विषै लिखे हुवे इंद्रियादि प्रमाद पर स्नेह-निद्रा विषे श्रागे उच्चारण कीए स्नेहह्वान निद्रालु-श्रोत्र इंद्रिय के वशीभूत-मायावी - भक्तकथालापी जैसा पूछया हुआ पैंतीसवां आलाप
जानना ।