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। गोम्मटसार कोवकाण्ड गाथा ११६-११७ छप्पंचाधियवीस, बारसकुलकोडिसदसहस्साई । सुर-रणेरइय-गरारणं, जहाकम होति रणयाणि ॥११६॥ पटपंचाधिकविंशतिः, द्वादश कुलकोटिशतसहस्राणि ।
सुरनैरपिकनराणां, यथाक्रम भवंति ज्ञेयानि ॥११६॥ टीका - देवनि के कुल छब्बीस लाख कोडि हैं । नारकोनि के कुल पचीस लाख कोडि हैं । मनुष्यनि के कुल बारह लाख कोडि हैं । ए सर्व कुल यथाक्रम करि कहे, ते भव्य जीवनि करि जानने योग्य हैं।
प्रागै सर्व जीवसमासनि के कुलनि के जोड की निर्देश करै हैं -
एया य कोडिकोडी, सत्तारणउदी य सदसहस्साई। पणं कोडिसहस्सा, सव्वंगीणं कुलारणं य ॥११७॥
एकाच कोटिकोटी, सप्तमयतिश्च शतसहस्रारिंग ।
पंचाशत्कोटिसहस्राणि सर्वागिनां कुलानां च ॥११७॥ टोका - असे कहे जे पृथ्वीकायिकादि मनुष्य पर्यन्त सर्व प्राणी, तिनके कुलनि का जोड एक कोडा-कोडि अर सत्यारण लाख पचास हजार कोडि प्रमाण
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इहा कोऊ कहैं कि कुल अर जाति विर्षे भेद कहा ?
ताका समाधन - जाति है सो सो योनि है, तहां उपजने के स्थानरूप पुद्गल स्कंध के भेदनि का ग्रहण करना । बहुरि कुल है सो जिनि पुद्गलनि करि शरीर निपजे, तिनके भेदरूप हैं। जैसे शरीररूप पुद्गल प्राकारादि भेद करि पर्चेद्रिय तिर्यंच विष हाथी, घोडा इत्यादि भेद हैं, असें यथासंभव जानने । इति प्राचार्य श्री नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती विरचित गोम्बस्टसार द्वितीय नाम पंचसंग्रह
ग्रन्थ की जीवतत्त्वप्रदीपिका नाम संस्कृत टीका के अनुसारि सभ्यग्ज्ञान चंद्रिका नामा इस भाषाटीका विष जीवकांड विष प्ररूपित जे बीस प्ररूपरणा, तिनि विर्षे जीवसमास प्ररूपणा है माम जाका, असा दूसरा अधिकार संपूर्ण भया ॥२॥