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सभ्यशालन्त्रिका भाषा टीका
1. ४२५ लीएं हैं। तिनिविर्षे एक नरकायु ही बंध है, सो इहां एक. का. अंक लिखना । बहुरि तात अनंतगुण घटता संल्के श लीएं पृथ्वी भेद समान कषाय विर्क के जे कृष्णलेश्या के स्थान हैं वा कृष्ण का नील दोय लेण्या के जे स्थान हैं: तिनिविर्षे एक नरक प्राय ही बंध है । सो तिनि दोय स्थान नि विर्षे एक-एक का अंक लिखना । बहुरि तिस ही विर्षे केइ अगले स्थान कृष्ण, नील, कपोत तीन लेश्या के हैं, सो तिनिविर्षे केई स्थाननि विर्षे तो एक नरकायु ही का बंध हो है । बहुरि केई अगले स्थाननि विर्षे नरक वा तिर्यच दोय प्रायु बंधे हैं । बहुरि केई अगले स्थाननि विर्षे नरक, तिर्यंच मनुष्य तीन आयु बंधे हैं। सो तीन लेश्या के स्थान विर्षे एक, दोय, तीन का अंक लिखना । बहुरि तिस ही पृथ्वी के भेद समान. शक्तिस्थान विर्ष केई कृष्ण नील, कपोत, पीत इनि च्यारि लेश्या के स्थान है । केइक कृष्णादि पा लेश्या पर्यंत पंच के स्थान है । के इक कृष्णादिक शुक्ल लेश्या पर्यंत. षट्लेश्या के स्थान हैं । सी. इन तीनू ही जायगा मरक, तिर्यंच, मनुष्य, देव संबंधी च्यार्यो ही प्रायु बध हैं, सो तीनों जायगा च्यारि-च्यारि का अंक लिखना ।
धूलिगछक्कट्ठाणे, चउराऊतिगद्गं च उवरिल्लं । पणचदुधाणे देव, देवं सुण्णं च तिठाणे ॥२६॥
धूलिगषट्कस्थाने, चतुराय पि त्रिकदिक चोपरितनम् ।
पंचचतुर्थस्थाने देवं देवं शून्यं च तृतीयस्थाने ॥२९४॥ टीका - बहुरि पूर्वोक्त स्थान ते अनंतानंतगुणा घाटि संक्लेश लीएं धूलि रेखा समान शक्तिस्थान विर्षे केई कृष्णादि शुक्ललेश्या पर्यंत, षटलेश्या के स्थान हैं । तिनि विर्षे केई स्थाननि विर्षे तौ नरकादिक. च्यार्यो प्रायु बंधे हैं, । केई अगले स्थाननि विर्षे नरकायु बिना तील प्रायु ही अंघ हैं । केई अगले स्थाननि विर्षे मनुष्य, देव दोय ही प्रायु बध हैं । सो तहां च्यारि, तीन, दोन के अंक लिखने । बहुरि तिस ही धूलि. रेखा समान शक्तिस्थान विर्ष केई कृष्ण लेश्या बिना पंच लेश्या के स्थान हैं। केई कृष्ण नील बिना च्यारि लेश्या के स्थान हैं । इनि दोऊ जायगा एक देवायु हो बंध हैं । सो दोऊ जायगा एक-एक का अंक लिखनाः । बहुरि तिस ही धूलि रेखा समान- शक्तिस्थान विर्षे केई. पीतादि तीन शुभलेश्या संबंधी स्थान हैं । लिनिवि केई स्थाननि विर्षे तो एक देवायु ही वंधे हैं, तहां एक का अंक लिखना । बहुरि केई