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गोम्मरसार जीवकाण्ड गाया ३४७-३४८-३४९ आगे चौदह पूर्वनि विर्षे वस्तुनामा अधिकारनि को वा प्राभृतनामा अधिकारनि की संख्या कहै हैं ~~~
पणणउदिसया वत्थू, पाहुड्या तियसहस्सणवयसया। एदेसु चोइसेसु वि, पुब्वेस हवंति मिलिदाणि ॥३४७॥
पंचमवतिशतानि वस्तूनि, प्राभृतकानि त्रिसहस्रनवशतानि ।
एतेषु चतुर्दशस्वपि, पूर्वेषु भवंति मिलितानि ।।३४७॥ टीका - जो उत्पाद आदि जिलोकबिंदुसार पर्यंत चौदह पूर्व, तिनिविर्षे मिलाए हुवे, दश ग्रादि वस्तु नामा अधिकार सर्व एक सौ पिच्यारणवै (१९५) हो हैं। बहुरि एक एक वस्तु विर्षे बीस बीस प्राभृतक कहे. ते सर्व प्राभृतक नामा अधिकार तीन हजार नव से (३६०० } जानने ।
भाग पूर्व कहे जे श्रुतज्ञान के बास भेद, तिनिका उपसंहार दोय गाथानि करि कहै हैं --
अत्थक्खरं च पदसंघातं, पडिवत्तियाणिजोगं च । दुगवारपाहुडं च य, पाहुड्यं वत्थु पुव्वं च ॥३४८॥ कमवण्णुतरवढिय, ताण समासा य अक्खरगहाणि । पाणवियप्पे वीस, गंथे बारस य चोहसयं ॥३४६॥
अर्थाक्षरं च परसंघात, प्रतिपत्तिकानुयोगं च । द्विकवारप्राभृतं च च, प्राभृतकं वस्तु पूर्व च ॥३४८॥ झमवर्णोत्तरवधिले, तेषां समासाश्च अक्षरगताः ।
ज्ञानविकल्पे विशतिः, ग्रंथे द्वादश च चतुर्दशकम् ।।३४९॥ टोका - अर्थाक्षर, पद, संघात, प्रतिपत्तिक, अनुयोग, प्राभृतकप्राभृतक, प्राभूतक, वस्तु, पूर्व ए नव भेद बहुरि एक एक अक्षर की वृद्धि श्रादि यथा संभव वृद्धि लीए इन ही अक्षरादिकनि के समास तिनि करि नब भेद, असे सर्व मिलि करि अठारह भेद, अक्षरात्मक द्रव्यश्रुत के हैं । अर ज्ञान की अपेक्षा इन ही द्रव्यश्रुतनि के सुनने से जो ज्ञान भया, सो उस ज्ञान के भी अठारह भेदः