________________
सम्यानचन्द्रिका भाषाटीका ]
[ ४६ कहिए । बहुरि अनक्षरात्मक श्रुतज्ञान के पर्याय अर पर्यायसमास ए दोय भेद मिलाएं; सर्व श्रुतज्ञान के बीस भेद भए । बहुरि ग्रंथ जो शास्त्र, ताकी विवक्षा करिए लौ आचारांग आदि द्वादश अंग पर उत्पाद पूर्व आदि चौदह पूर्व अर चकारतें सामायिकादि चौदह प्रकीरणक, तिमिस्वरूप द्रव्यश्रुत जानना । ताके सनने तें-जो ज्ञान भया, सो भाव श्रुतज्ञान जानना । पुद्गल द्रव्यस्वरूप अक्षर पदादिकमय तौ द्रव्यश्रुत है । ताके सुनने से जो श्रुतज्ञान का पर्यायरूप ज्ञान भया, सो भावश्रुत है। ..
अब जो पर्याय आदि भेद कहे, तिचि शब्दनि की निरुक्ति व्याकरण अनुसारि कहिए हैं । परीयंते कहिए सर्व जीव जाकरि व्याप्त हैं सो पर्याय कहिए । पर्यायशान बिना कोऊ जीव नाहीं । केवल ज्ञानीनि के भी पर्यायज्ञान संभव है। जैसे किसी के कोटि धन पाइए है, तो वाकै एक धन तो सहज ही वामें पाया तैसें महाज्ञान विषं स्तोकज्ञान गर्भित भया जानना ।
बहुरि अक्ष कहिए कर्णइंद्रिय, ताकौं अपना स्वरूप कौं राति कहिए ज्ञान द्वार करि दे है, तातै अक्षर कहिए ।
. बहुरि पद्यते कहिए जाकरि प्रात्मा अर्थ को प्राप्त होइ, ताकौं पद कहिए ।
बहुरि सं कहिए संक्षेप तै, हम्यते, गम्यते कहिए जानिए एक मति का स्वरूप जिहिं करि, सो संघात कहिए ।
बहुरि प्रतिपद्यते कहिए विस्तार से जानिए हैं, च्यारि गति जाकरि, सो प्रतिपति कहिए । नामसंज्ञा विर्ष के प्रत्यय ते प्रतिपत्तिक कहिए ।।
बहुरि अनु कहिए मुणस्थाननि के अनुसारि, युज्यते कहिए संबंधरूप जीव जा विर्षे कहिए है, सो अनुयोग कहिए ।
बहुरि प्रकर्षण कहिए नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव , अथवा निर्देश, स्वामित्व, साधन, अधिकरण, स्थिति, विधान, अथवा सत्, संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अंतर, भाव, अल्पबहुत्व इत्यादि विशेषकरि आभृतं कहिए परिपूर्ण होइ, असा जो वस्तु का अधिकार, सो प्राभृत कहिए । पर जाकी प्राभूत संज्ञा होइ, सो प्राभृतक कहिए । बहुरि प्रामृतक का जो अधिकार, सो प्राभृतकप्राभृतक कहिए ।