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सम्मानका भाषाटीका ]
। ५३५ स्कंध भया, ताकौं द्रव्य की अपेक्षा तीसरा भेदवाला जाने । पर यह क्षेत्र की अपेक्षा तितना ही क्षेत्र कौं जानें; तातें द्रव्य की अपेक्षा तीसरा भेद भया । क्षेत्र की अपेक्षा प्रथम भेद ही है । असे द्रव्य की अपेक्षा सूच्यंगुल का असंख्यातवां भाग प्रमाण भेद होइ, तहां पर्यंत जघन्य क्षेत्र मात्र क्षेत्र की जाने । तातें द्रव्य की अपेक्षा तौ सूच्यंगुल का असंख्यातवा भाग प्रमाण भेद भए, अर क्षेत्र की अपेक्षा एक ही भेद भया । बहुरि इहांसे प्रागें असें ही ध्र वहार का भाग देते देते सूच्यंगुल का असंख्यातवा भाग प्रमाण द्रव्य की अपेक्षा भेद होइ, तहां पर्यंत जघन्य क्षेत्र से एक प्रदेश बधता क्षेत्र कौं जाने, तहां क्षेत्र की अपेक्षा दूसरा ही भेद रहै ।
बहुरि तहां पीछे सूच्यंगुल का असंख्यातवां भाग मात्र, द्रव्य अपेक्षा भेदनि विर्षे एक प्रदेश और बधता क्षेत्र की जाने; तहां क्षेत्र की अपेक्षा तीसरा भेद होइ । असें ही सूच्यंगल का असंख्यासवां भाग प्रमाण द्रव्य की अपेक्षा भेद होते होते क्षेत्र की अपेक्षा एक एक बधता भेद होइ; सो असें लोकप्रमाण उत्कृष्ट देशावधि का क्षेत्र पर्यंत जानना । तातें क्षेत्र की अपेक्षा भेदनि ते द्रव्य की अपेक्षा भेद सूच्यंगुल का असंख्यातवां भागप्रमाण गुण कहा । बहुरि अवशेष पहला द्रव्य का भेद था; सो पीछे मिलाया, तातै एक का मिलावना कह्या है ।
तिन देशावधि के जघन्य क्षेत्र अर उत्कृष्ट क्षेत्रनि का प्रमाण कहैं हैं - अंगुलअसंखभाग, प्रवरं उक्कस्सयं हवे लोगो। इदि वग्गरणगुणगारो, असंखधुवहारसंवग्गो ॥३६१॥
अंगुलासंख्यभागमवरमुत्कृष्टकं भवेल्लोकः ।
इति वर्गरणागुणकारोऽ, संख्यध्रुवहारसंदर्यः ॥३९१॥ टोका - जघन्य देशावधि का विषयभूत क्षेत्र सूक्ष्मनिगोद लब्धि अपर्याप्तिक की जघन्य अवगाहना के समान धनांगुल के असंख्यातवें भागमात्र जानना । बहुरि देशावधि का विषयभूत उत्कृष्ट क्षेत्र लोकप्रमाण जानना । उत्कृष्ट देशावधिवाला सर्वलोक विषं तिष्ठता अपना विषय को जाने, असे दोय घाटि, देशावधि का द्रव्य की अपेक्षा जितने भेद होइ, तितना ध्र वहार मांडि, परस्पर गुणन करना; सोई संवर्ग भया । यों करते जो प्रमाण भया होइ, सोई कार्माण वर्गरणा का गुणकार जानना। सो कह्या ही था ।
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