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सम्यग्ज्ञानन्तिका भाषाटीका ] द्रव्य की अपेक्षा भेद है। जैसे ध्र वहार का प्रमाण, वर्गणा गुणकार का प्रमाण, वर्गणा का प्रमाण हे शिष्य ! तू जानि ।
देसोहिअवरदवं, धुवहारेणवहिदे हवे बिवियं। .. तदियादिबियप्पेस वि, असंखबारो ति एस कमो ॥३६४॥
देशावध्यवरद्रव्यं, ध्रुवहारेणावहिते भवेद्वितीयं ।
तृतीयादिविकल्पेष्वपि, असंख्यवार इत्येष क्रमः ॥३९४।। टीका --- देशावधिज्ञान का विषयभूत जघन्य द्रव्य पूर्व कहा था, ताकौं ध्रुवहार का भाग दीएं, जो प्रमाण होइ, सो दूसरा देशावधि के भेद का विषयभूत द्रव्य होइ । जैसे ही 5 बहार का भाग देते देते तीसरा, चौथा इत्यादि भेदनि का विषयभूत द्रव्य होहि । असे असंख्यात बार अनुक्रम करना ।
असे अनुक्रम होतें कहा होइ ? सो कहिए है -- देसोहिमज्झमेदे, सविस्ससोवचयतेजकम्मंगं । तेजोभासमरणारणं, वग्गणयं केवलं जत्थ ॥३६॥ पस्सदि ओही तत्थ, असंखेज्जाओ हवंति दीउबही। वासाणि असंखेज्जा, होति असंखेज्जगुणिदकमा ॥३६६॥जुम्म।
देशावधिमध्यभेदे, सविनसोपच्यतेजः कर्मागम् । तेजोभाषामनसा, वर्गणां केवला यत्र ॥३९५॥ पश्यस्यवधिस्तत्र, असंख्यया भवति द्वीपोदधयः ।
वर्षाणि असंख्यातानि भवति असंख्यातगुणितक्रमाणि ॥३९६॥ टीका -- देशावधि के मध्य भेदनि विर्षे देशावधिज्ञान जिस भेद विर्ष विनसोपचय सहित तैजस शरीररूप स्कंध कौं जाने हैं । बहुरि तिस ही क्रम ते जिस भेद विर्षे विस्रसोपच्य सहित कामणि शरीर स्कंध कौं जान है । बहुरि इहां से आगे जिस भेद विर्षे विस्रसोपचय रहित केवल तैजस वर्गणा कौं जाने हैं। बहुरि इहां ते आमैं जिस भेद विर्षे विनसोपचय रहित केवल भाषावर्गणा को जाने हैं । इहां ते