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| मोम्मटसार जीवकास गाथा ३६९.३६८
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इला, पिंगला, सुष्मणा, इत्यादि स्वरोदय रूप बहुत प्रकार कारणरूप सासोस्वास का भेद; बहुरि दश प्राणनि की उपकारी वा अनुपकारी वस्तु गत्यादिक के अनुसारि वर्णन कीजिए है; सो जाके दोय लाख से छह से पचास कौं मुगिए, ऐसे तेरह कोडि (१३००००.०००) पद हैं।
बहुरि क्रिया करि विशाल कहिए विस्तीर्ण, शोभायमान जैसा क्रियाविशाल नामा तेरह्वां पूर्व है । इसविर्षे संगीत, शास्त्र, छंद, अलंकारादि शास्त्र, बहत्तरि कला, चौसठि स्त्री का गुरण शिल्प आदि चातुर्यता, गर्भाधान प्रादि चौरासी क्रिया, सम्यग्दशनादि एक से पाठ क्रिया, देववंदना प्रादि पचीस क्रिया और नित्य नैमित्तिक क्रिया इत्यादिक प्ररूपिए हैं । याके दोय लाख ते च्यारि से पचास कौं गुरिगए असे नव कोडि (६०००००००) पद हैं ।
बहुरि त्रिलोकनि का बिदु कहिए अवयव भर सार सो प्ररूपिए है, याविर्षे जैसा त्रिलोकबिंदुसार नामा चौदह्वां पूर्व है । इसविर्षे तीन लोक का स्वरूप पर छब्बीस परिकर्म, पाठ व्यवहार, च्यारि बीज इत्यादि गणित अर मोक्ष का स्वरूप, मोक्ष का कारणभूत क्रिया, मोक्ष का सुख इत्यादि वर्णन कीजिए है । याके दोय लाख तें छह से पचीस कौं गुरिगए, असे बारह कोडि पचास लाख (१२५००००००)पद हैं।
असे चौदह पूर्वनि के पदनि की संख्या हो है । इहां दोय लाख का गुणकार का विधान करि गाथा विर्षे संख्या कही थी; तातै टीका विर्षे भी तेसै ही कही है ।
सामाइय चउवीसत्थयं, तदो वंदरणा पडिक्कमणं । वेणइयं किदियम्म, दसवेयालं च उत्तरज्झयणं ॥३६७॥ कप्पववहार-कप्पाकप्पिय-महकप्पियं च पुंडरियं । महपुंडरीयणिसिहियमिति चोहसमंगबाहिरयं ॥३६८॥
सामायिक सविशस्तवं, सतो वंदना प्रतिकमरणं । वनयिक कृतिकर्म, दशवकालिकं च उत्तराध्ययनं ॥३६७।। कल्प्यव्यवहार - कल्प्याकल्प्य - महाकल्प्यं च पुंडरीकं । महापुंडरीक निषिद्धिका इति चतुर्दशांगवाह ।।३६८३॥
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