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[ गोम्मरसार जीवका पाथा ३८६-३७-३८८
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मरणदव्ववग्गणाण, वियप्पारणंतिमसमं खु धबहारो। अवरुषकस्सविसेसा, रूवहिया तस्वियपा ॥३६॥
मनोद्रध्यवर्गणानां, विकल्पानंतिमसम खलु ध्रुवहारः ।
अवरोस्कृष्ट विशेषाः, रूपाधिकास्तद्विकल्पा हि ॥३८६।। टीका - मनोवर्गणा के जितने भेद हैं, तिनिकौं अनंत का भाग दोजिए, एक भाग का जितना प्रमाण होइ, सो ध्र वहार का प्रभाए जानना । ते मनोवर्गणा के भेद केते है, सो कहिए है - मनोवर्गणा का जघन्य प्रमाण कौं मनोवर्गणा का उत्कृष्ट प्रमाण में सौं घटाएं, जो प्रमाण अवशेष रहै, तीहिविर्षे एक अधिक कीएं, मनोवर्गणा के भेदनि का प्रमाण हो है । आगै सम्यक्त्व भार्गरणा का कथन वि तेईस जाति की पुद्गल वर्गणा कहेंगे । तहां तैजसवर्गरणा, भाषावर्गणा, मनोवसरणा, कार्मारणवर्गरणा इत्यादिक का वर्णन करेंगे; सो जानना ।
इस मनोवर्गणा का जघन्य भेद अर उत्कृष्ट भेद का प्रमाण दिखाइए है - अवरं होदि अरणंतं, अणंतभागेरण अहियमुक्कस्सं । इदि मणभेदारपंतिमभागो दवम्मि धुवहारी ॥३८७॥
प्रवरं भवति अनंतमनंतभागेनाधिकमुत्कृष्टं ।
इति मनोभेदानंतिमभायो द्रव्ये ध्रुवहारः ॥३८७।। टीका - मनोवर्गणा का जघन्य भेद अनंत प्रमाण हैं । अनंत परमाणूनि का स्कंधरूप जघन्य मनोवर्गणा है । इस प्रसारण कौं अनंत का भाग दीएं, जो प्रमाण आदे, तितना उस जघन्य भेद का प्रमाण विर्षे जोड़ें, जो प्रमाण होइ, सोई मनोवर्गरणा का उत्कृष्ट भेद का प्रमाण जानना । इतने परमाणनि का स्कंधरूप उत्कृष्ट मनोर्वगणा हो है; सो जघन्य तें लगाइ उत्कृष्ट पर्यंत पूर्वोक्त प्रकार जेते मनोवर्गणा के भेद भए, तिनके अनंतवें भागमात्र इहां ध्र वहार का प्रमाण है।
अथवा अन्यप्रकार कहै हैं ---- धुवहारस्स पमारणं, सिद्धाणंतिमपमाणमेत्तं पि । समयपबद्धणिमित्तं, कम्मणवरगाणगुणा दो दु॥३८८॥
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