________________
toमारवा
মধ্যনগ্ধা আধাকা । नाहीं; ताते विस्रसोपचय सहित कहा । असे स्कंध कौं लोक के जितने प्रदेश हैं, उतने खंड करिये । तहां एक खंड प्रमाण पुद्गल परमाणूनि का स्कंध नेवादिक इंद्रियनि के गोचर नाहीं ! ताकी जघन्य देशावधिज्ञान प्रत्यक्ष जाने है। जैसा जघन्य देशावधि ज्ञान का विषयभूत द्रव्य का नियम कहा।
सुहमणिगोदअपज्जत्तयस्स, जादस्स तदियसमयम्हि। . अवरोगाहणमाणं, जहण्णयं ओहिखेत्तं तु ॥३७८॥
सूक्ष्मनिमोनापर्याप्तकस्य, जातस्य तृतीयसमये । ।
अवरावगाहनमानं, जघन्यकमवधिक्षेत्रं तु ॥३७८॥ टीका --बहरि सूक्ष्म निगोदिया लब्धि अपर्याप्तक के जन्म से तीसरा समय के विर्षे जघन्य अवगाहना का प्रमाण पूर्व जीव समासाधिकार विर्षे कहा था, तीहिं प्रमाण जघन्य अवगाहना का क्षेत्र जानना । इतने क्षेत्र विर्षे पूर्वोक्त प्रमाण लीए वा तिसत स्थूल जेते पुद्गल स्कंध होइ, तिनिकों जघन्य देशावधिज्ञान जान है । इस क्षेत्र के बारै तिष्ठते जे होइ, तिनकौं न जाने है, जैसे क्षेत्र की मर्यादा कही ।
अवरोहिखेत्तदीहं, वित्थारुस्सेहयं ण जाणामो। अण्णं पुण समकरणे, अवरोगाहणपमाणं तु ॥३७६॥
प्रवरावधिक्षेत्रदीर्घ, विस्तारोत्सेधकं न जानीमः ।
अन्यस् पुनः समीकरणे, अवरावगाहनप्रमाणं तु ॥३७९॥ । टीका - बहुरि जघन्य देशावधिज्ञान का विषय भूत क्षेत्र की लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई का प्रमाण हम न जाने है कितना कितना है; जाते इहां असा उपदेश नाही, परंतु परम गुरुनि का उपदेश की परम्परा से इतना जाने हैं; जो भुज, कोटि, वेनि का समीकरण तें जो क्षेत्रफल होइ, सो जघन्य अवगाहना के समान घनांगुल के असंख्यातवें भागमात्र हो है ।
आम्ही साम्ही दोय दिसानि विषं जो कोई एक दिशा संबंधी प्रमाण, सो भुज कहिये।
अवशेष दोय दिसानि विर्षे कोई एक दिशा संबंधी प्रमाण, सो कोटि कहिए !
ATERamanand