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गोमहसार जौवकापट माषा ३५० ।
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बहुरि वसंति कहिए पूर्वरूपी समुद्रका अर्थ, जिस विषं एकोदेशपन पाइए, सो. पूर्व का अधिकार वस्तु कहिए ।
बहुरि पूरयति कहिए शास्त्र के अर्थ को पोषं, सो पूर्व कहिए । असे दश भेदनि की निरुक्ति कही।
बहुरि सं कहिए संग्रह करि पर्याय आदि पूर्व पर्यंत भेदन की अंगीकार करि अस्थते कहिए प्राप्त करिए, भेद करिए, ते समास कहिए ।
पर्याय ज्ञान ते जे पीछे भेद, तिनको पर्याय समास कहिए । ___ अक्षर ज्ञान ते जे पीछे भेद, तिनकौं अक्षर समास कहिए । असे ही दश भेद... जानने।
असे पूर्व चौदह पर वस्तु एक सौ पिच्याण अर प्राभृतक तीन हजार नव सै पर प्राभृतक - प्राभृतक तिराणवै हजार छह सै अर अनुयोग तीन लाख चौहत्तरि हजार च्यारि से पर प्रतिपतिक अर संघात अर पद क्रम तै संख्यात हजार गुणे अर एक पद के अक्षर सोलह सौ चौंतीस कोडि तियासी लाख सात हजार पाठ से अठ्यासी अर समस्त श्रुत के अक्षर एक घाटि. एकट्ठी प्रमाण, इनिकौ पद के प्रक्षरनि का भाग दीएं, जो लब्धराशि होइ सो द्वादशांग के पदों का प्रमाण जानना ।
अब शेष अक्षर है, ते अंगबाह्य श्रुत के जानने ।। तहां प्रथम द्वादशांग के पदनि की संख्या कहैं हैं - बारुत्तरसयकोडी, तेसीदी तहय होंति लक्खार । अट्ठावण्णसहस्सा, पंचेव पदाणि अंगारणं ।।३५०॥
द्वादशोत्तरशतकोट्यः ग्यशोतिस्तथा च भवति लक्षाणाम् ।
अष्टापंचाशत्सहस्रारिंग, पंचव पदानि अंगानाम् ॥३५॥ टीका - एक सौ बारह कोडि तियासी लाख अठावन हजार पांच पद . (११२,८३,५८,००५) सर्व द्वादशांग के जानने । अंग्यते कहिए मध्यम पदनि करि जो लखिये, सो अंग कहिए । अथवा सर्व श्रुत का जो एक एक प्राचारांगादिक रूप अवयव, सो अंग कहिए । जैसे अंग शब्द की निरुक्ति है ।
- Arraimirmire
ROMTARA