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[ गोम्मटसार जोवका गाथा ३६५-३६६
बहुरि जिस प्रकार अक्षर कहे जांहि ते प्रयत्न पांच हैं- स्पृष्टता, ईषत् स्पृष्टता, विवृतता, ईषद्विवृतता, संवृतता । तहां अंग का अंग तैं स्पर्श भए, अक्षर बोलिए सो स्पृष्टता । किछू थोरा स्पर्श भए बोलिए, सो ईषत्स्पृष्टता अंग को उघाडि बोलिए, सो विवृतता कि थोरा उघाडि बोलिए, सो ईषद्विवृतता अंग तें अंग को ठोकि बोलिए; सो संवृतता । जैसें प कारादिक होठ से होठ का स्पर्श भएं ही उच्चारण होइ, असे प्रयत्न जानने ।
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बहुप्रयोग दो प्रकार शिष्टरूप भला वचन, दुष्टरूप बुरा वचन | बहुरि भाषा बारह प्रकार, तहां इसने जैसा कीया हैं; सा अनिष्ट वचनः कहना, सो अभ्याख्यान कहिए। बहुरि जाते परस्पर विशेष होइ, सो कलह वचन । बहुरि पर का दोष प्रकट करना; सो पैशुन्य वचन | बहुरि धर्म अर्थ काम मोक्ष का संबंध रहित वचन, सो प्रसंबंद्ध प्रलाप वचन | बहुरि इन्द्रिय विषयनि विषै रति का उपजावन हारा वचन; सो रति वचन | बहुरि विषयनि विषै रति का उपजाव हारा बचन सोअरति वचन । बहुरि परिग्रह का उपजावने, राखने की आसक्तता का कारण वचन, सो उपधि वचन | बहुरि व्यवहार विषे ठिगनेरूप वचन, सो निकृतिवचनः । बहुरि तप ज्ञानादिक विषे अविनय का कारण वचन; सो अप्रगति वचन ।' बहुरि चोरी का कारणरूप वचन, सो मोष वचन | बहुरि भले मार्ग का उपदेशरूप वचन, सो सम्यग्दर्शन वचन । बहुरि मिथ्या मार्ग का उपदेशरूप वचन, सो मिथ्यादर्शन वचन | जैसे बारह भाषा है ।
बहुरि बेइंद्रिय आदि सैनी पंचेन्द्रिय पर्यंत वचन बोलने वाले वक्तानि के भेद हैं 'बहुरि द्रव्य क्षेत्र काल भावादिक करि मृषा जो असत्य वचन; सो बहुत प्रकार हैं । बहुरि जनपदादि दश प्रकार सत्यं वचन पूर्वे योग मार्गणा विषै कहि आए हैं; जैसा जैसा कथन इस पूर्व वि है । याके दोय लाख तें पचास को गुणिए श्रर छज्जुदा इस वचन करि छह मिलाइए से एक कोटि छह (१००००००६) पद हैं ।
बहुरि श्रात्मा का प्रवाद कहिए प्ररूपण है, इस विषे सा श्रात्मप्रबाद नामा सातमां पूर्व है । इस विषै गाथा
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जीव कत्ता यं वेत्ता य पाणी भोत्ता य पुग्गलो 1 aat froहू सयंभू य सरीरी तह मालवी ॥