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| गोम्मटसार जीयकाय गाथा ३५५ दीयं, चारि, पाठ, सोलह, बत्तीस, चौसठ, एक से अठाईस, दोय सै छप्पन, पांच से बारह एक हजार चौबीस, दोय हजार अडतालिस, च्यारि हजार छिनर्व, पाठ हजार एक से बानवे, सोलह हजार तीन से चौरासी, बत्तीस हजार सात से अडसठि, पैंसठि हजार पांच से छत्तीस, एक लाख इकतीस हजार बहत्तरि, दोय लाख बासठि हजार एक से चवालीस, पांच लाख चौबीस हजार दोय सै अठासी, दश लाख अडतालीस हजार पांच से छिहत्तरि, बीस लाख सित्ताणवै हजार एक सं बावन, इकतालीस लाख चौराणवै हजार तीन से दोय, तियासी लाख अठासी हजार छ सै चारि, एक कोडि सडसठिलाख तेहत्तरि हजार दोष से पाठ इत्यादि दूरणे दूरण हो हैं । अत स्थान हैं चौथा, तीसरा, दूसरा अन्तस्थान विर्षे एकट्टी का सोलहवां, आठवां, चौथा, दूसरा, भागमात्र भए, तिन सबनि कौं जोर्ड, 'चउसद्विपदं विरलिय' इत्यादि सूत्रोक्त एक घाटि एकट्ठी मात्र भंग हो है । अथवा 'अन्तधणं गुणगुणियं' 'आदि विहीणं रूउणुतरभजिय' इस करण सूत्र करि अन्त एकट्ठी क साधा लाकौं गुणकार दोय करि गुणे, एकट्ठी, तामै एक घटाएं, एक घाटि एकट्टी एक घाटी गुणकार एक, ताका भाग दीएं भी इसने ही सर्व भंग हो हैं। जैसे सर्वश्रुत संबंधी समस्त अक्षरनि की संख्या एक घाटि एकट्टी प्रमाण जानना ।
__ इहां जैसे अ, आ, आ, इ, ई, ई इनि छह अक्षरनि विर्षे प्रत्येक भंग छह, द्वि संयोगी पंद्रह, त्रि संयोगी वीस, चतुः संयोगी पंद्रह, पंच संयोगी छह, छह संयोगों एक मिलि तरेसठि भंग होइ । छह जायगा दूवा मांडि, परस्पर मुणे एक घटाय तरेसठि हो हैं । तैसें चौसठि मूल अक्षरनि विर्ष पूर्व एक एक स्थान वि एक एक प्रत्येक भंग मिलि, चौसठि भएं । असें ही सर्व स्थानकनि के द्वि संयोगी, वि संयोगी आदि भंग मांडि, जितने जितने होइ, तितने तितने द्वि संयोगी, त्रि संयोमी आदि भम जानने ! सबनि कौं जोड़ें, एक घाटि एकट्ठी प्रमाण हो हैं । सोई चौसठि जायगा दोय का अंक मांडि, परस्पर गुण, तहां एक घटाएं, एक घाटि एकट्ठी प्रमाण श्रुतज्ञान के अक्षर .जामने।
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मझिम-पदक्खरवहिदवण्णा से अंगपुख्यगपदाणि । सेसक्खरसंखा ओ, पइण्णयारणं पमारणं तु ॥३५॥
मध्यमपदाक्षरावहितवरास्ते अंगपूर्वगपदानि । शेषाक्षरसंख्या अहो, प्रकीर्णकानां प्रमाणं तु ॥३५५।।