________________
गोम्मटसार जोवकाण्ड पाथा ३१०
टोका - ईहा के करने करि ताके पीछे जिस वस्तु की ईहा भई थी, ताका भले प्रकार निर्णय रूप जो ज्ञान, ताकौं अवाय कहिए ।
जैसे पाखनि का हलावना आदि चिह्न करि यहु निशय कीया जो बुगलनि की पंकति ही है, निश्चयकरि और किछु नाहीं; असा निर्णय का नाम अवाय है । तु शब्द करि पूर्व जो ईहा विर्षे वांछित वस्तु था, ताही का भले प्रकार निर्णय, सो अवाय है । बहुरि जो वस्तु किछू और है; पर और ही वस्तु का निश्चय करि लीया है, तो वाका नाम अवाय नाहीं, वह मिथ्याशान है।
बहुरि तहां पीछे बार-बार निश्चयरूप अभ्यास ते उपज्या जो संस्कार, तीहि स्वरूप होह, केते इक काल कौं व्यतीत भएं भी यादि प्रावने को कारणभूत जो ज्ञान सो धारणा नाम चौथा ज्ञान का भेद हो है। जैसे ही सर्व इंद्रिय वा मन संबंधी अदग्रह, ईहा, अवाय, धारणा भेद जानने ।
बहु बहुविहं च खिप्पारिपस्सिवणुत्तं ध्रुवं च इवरं च । तत्थेक्कक्के जादे, छत्तीसं तिसयभेदं तु ॥३१०॥
बष्टु बहुविधं च क्षिप्रानिःमृदनुक्तं ध्रुवं च इतरञ्च ।
तत्रैककस्मिन् जाते, षनिशत्त्रिंशतभेदं तु ॥३१०।। टोका - अर्थरूप वा व्यंजनरूप जो मतिज्ञान का विषय, ताके बारह भेद हैं - बहु, बहुविध, क्षिप्र, अनिसृत, अनुक्त, ध्रुव, ए छह । बहुरि' इतर जे छहौं इनके प्रतिपक्षी एक, एकविध, प्रक्षिप्र, निसृत, उक्त, अध्र व ए छह ; जैसे बारह भेद जानने । सो व्यंजनावग्रह के च्यारि इंद्रियनि करि च्यारि भेद भए, अर अर्थ के अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा लें पंच इंद्रिय छठा मन करि चौबीस भेद भएं । मिलाएं ते अठाईस भेद भएं । सो व्यंजन रूप बहु विषय का च्यारि इंद्रियनि करि अवग्रह हो है । सो च्यारि भेद तौ ए भएं । अर अर्थ रूप बहु विषय का पंच इंद्रिय, छठा मन करि गुण अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा हो हैं। सातै चौबीस भएं । जैसे एक, 'बहु विषय संबंधी अठाईस भेद भएं । असे ही बहुविध प्रादि भेदनि विर्षे अठाईस-अठाईस भेद हो हैं। सब को मिलाएं बारह विषयनि वि मतिज्ञान के तीन से छत्तीस (३३६) भेद हो हैं । जो एक विषय विर्षे अठाईस मतिज्ञान के भेद होइ तौ बारह विषयनि
--
-
"
m
illioni