________________
सम्मानचन्द्रिका भरपाटीका )
ताका समाधान - जो द्विरूप वर्ग धारा विर्षे इस जघन्य ज्ञान तै पहिला स्थान एक जीव के अगुरुलघुगुणनि के अविभाग प्रतिच्छेदनि का प्रमाण है; तातें जयन्यज्ञान अनंतगुरणा है । तातै पहिलीबार भी प्रादि स्थान जो जघन्यज्ञान, तीहि विर्षे अनंत गुणवृद्धि अन्य अपेक्षा संभव है । बहुरि ज्ञान ही की अपेक्षा संभव नाही; तातै पहिली बार पंच वृद्धि ही कही संभव है। असैं जिनदेवने कहा है; वा देल्या है । बहुरि अंत का षट्स्थान विष भी आदि अष्टांक, अंत ऊर्वक हैं । तातें प्रागै अष्टांक जो अनंत गुगावृद्धिरूप स्थान, मो अर्थ अक्षर ज्ञान है; सो आगे कहेंगे; सो जानना।
एक्कं खलु अट्ठक, सत्तंक कंडयं तदो हेट्ठा । रूवहियकंडएण य, गुणिदकमा जाव उध्वंकं ॥३२॥
एक खलु अष्टांक सप्ताफ कांडकं ततोऽधः ।
रूपाधिककांडकेन च, गुरिगतमा यावदुर्वकम् ।।३२९।। टीका - एक बार जो षट्स्थान होइ, तीहि विर्षे अष्टाक कहिए अनंत गुणवृद्धि सो तो एकबार ही हो है । जातं 'अंगुल असंख भागं' इत्यादि सूत्र अनुसार अष्टांक के पर कोई वृद्धि नाहीं । तातै बाके पूर्वपना का अभावतें बार बार पलटने का अभाव है । बहुरि सप्तांक कहिए असंख्यात गुणवृद्धि; सो कांडकं कहिए सूच्यंगुल का असं. ख्यातवां भागमात्र हो है । बहुरि ताके नीचें षडंक कहिए संख्यात गुणवृद्धि, पंचक कहिए संख्यात भाग वृद्धि, चतुरंक काहिए असंख्यात भागवृद्धि, ऊर्वकं कहिए अनंतभागवृद्धि, ए च्यार्यो एक अधिक सूच्यंगुल का असंख्यातवा भाग करि गुणित अनुक्रम तें जाननीं । इहां यावत् अर्वकं इस क्चन करि उर्वक पर्यंत अनुक्रम की मर्यादा कही है । सोई कहिए है - असंख्यात गुणवृद्धि का प्रमाण सूच्यंगुल का असंख्यातवां भाग. प्रमाण कहा है । ताकौं एक अधिक सूच्यंगुल का असंख्यातवां भाग करि गुण, जो परिमाण होइ, तितनी बार संख्यात गुणदृद्धि हो है । बहुरि याकौं भो एक अधिक सूच्यंगुल का असंख्यातवां भाग करि गुण जो परिमारण होइ तितनी बार संख्यात भागवृद्धि हो है । बहुरि याकौं भी एक अधिक सूच्यंगुल का असंख्यातवां भाग करि मुरणे जो परिमाण होइ तितनी बार असंख्यात भागवृद्धि हो है । बहुरि याकौं भी एक अधिक सूच्चंगुल का असंख्यातदां भाम करि गुण जो परिणाम होइ तितनी बार अनंत