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[ गोम्मटसार जौवकाण्ड गाथा ३१५ ... अवाय, धारणा की अपेक्षा चौबीस है । बहुरि व्यंजन पर अर्थ का भेद कीएं अठाईस है; सो एक, च्यारि, चौबीस, अठाईस ( १।४।२४१२८ )। इन च्यार्यों को जुदै-. जुदे तीन जायगा मांडिए । तहां एक जायमा तौ सामान्यपने अपने-अपने विषय कौं जानें हैं, असा विषय संबंधी एक भेद करि गुणिए, तब तो एक, च्यारि, चौबीस, अठाईस ही भेद भएं । बहुरि दुसरी जायगा बहु, बहुविध, क्षिप्र, अनिसृत, अनुक्त, ध्रुव ए छह प्रकार विषय के भेद करि गुरिगए, तब छह (६), चौबीस (२४), के एक सौ चवालीस (१४४), एक सौ अडसठि (१६८) असे मतिज्ञान के प्राधे विषय भेदनि की अपेक्षा भेद भएं । बहुरि तीसरी जायगा उनके प्रतिपक्षी सहित बारह विषय भेदनि करि गुरिगए, तहां बारह (१२), अडतालीस (४८), दोय से अठ्यासो (२८८), तीन से छत्तीस (३३६) सर्व विषय भेदनि की अपेक्षा भतिज्ञान के भेद भएं । असें विवक्षाभेद करि मतिज्ञान के स्थान दिखाएं।
भाग श्रतज्ञान की प्ररूपणा का प्रारंभ करता संता प्रथम ही श्रुतज्ञान का सामान्य-लक्षरण कहैं हैं -
अत्थादो प्रत्यंतरमुवलंभंतं भणंति सुवणाणं । आभिणिबोहियपुब्वं, णियमेणिह सद्दजं पमुहं ॥३१५॥
अर्थाश्र्थातरमुपलभमान भणंति श्रुतज्ञानम् ।
प्राभिनिबोधिकपूर्व, नियमेनेह शब्दजं प्रमुखम् ।।३१५।। टीका -- मतिज्ञान करि निश्चय कीया जो पदार्थ, तिसकौं अवलंबि करि, तिसही पदार्थ के सम्बन्ध कौं लीएं, अन्य कोई पदार्थ, ताकौं जो जाने, सो श्रुतज्ञान है । सो श्रुतज्ञानावरण, बीयांतराय कर्म के क्षयोपशम से उपजै है; असे मुनीश्वर कहै हैं। __कैसा है श्रुतज्ञान ?
माभिनियोधिक जो मतिज्ञान, सो है पहिले जाके, पहिल मतिज्ञानावरण के क्षयोपशम से मतिज्ञान होइ, पीछे मतिज्ञान करि जो पदार्थ जान्या, ताका अवलंबन करि अन्य कोई पदार्थ का जानना होइ; सोई श्रुतज्ञान है । असा नियम जानना ।
१. प्रखंडागम -- धवला पुस्तक १; गाथा १८३, पृष्ठ ३६१ ।
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