________________
सभ्यखामचविका भाषाटोका ]
| ४४७
विषे केते होंहि असें वैराशिक कीएं लब्धराशि मात्र तीन से छत्तीस मतिज्ञान के भेद हो हैं ।
बहुदत्तिजादिगणं, बहुबहुविहामयरमियरगहणम्हि । arernal सिद्धा, खिप्यादी सेवरा य तहा ॥३११॥
बहुव्यक्तिजातिग्रहणे, बहुबहुविधमितरदितरग्रहणे ।
स्वनामतः सिद्धाः, क्षिप्रादयः सेतराश्च तथा ||३११।।
टीका - जहां बहुत व्यक्ति का ग्रहणरूप मतिज्ञान होइ, ताके विषय कौं बहु कहिए । बहुरि जहां बहुजाति का ग्रहणरूप मतिज्ञान होइ, ताके विषय को बहुविध कहिए । बहुरि से ही इतर का ग्रहण विधें जहां एक व्यक्ति को ग्रहण रूप मतिज्ञान होइ, ताके विषय की एक कहिए। बहुरि जहां एक जाति का ग्रहणरूप मतिज्ञान होइ, ताके विषय कौं एकविध कहिए ।
इहाँ उदाहरण दिखाइए हैं- जैसे खाड़ी गऊ, सांवली गऊ, मूंडी मऊ इत्यादि अनेक गऊनि की व्यक्ति को बहु कहिए। बहुरि गऊ, भैंस, घोडे इत्यादि अनेक जाति की बहुविध कहिए। बहुरि एक खांडी मऊ जैसी गऊ की एक व्यक्ति कौं एक कहिए । बहुरि खांडी, मूंडी, सांवली गऊ है; जैसी एक जाति की एकविध कहिए। एक जाति विषै अनेक व्यक्ति पाइए हैं। जैसे बारह भेदनि विषै च्यारि तो कहे ।
बहूरि प्रवशेष क्षिप्रादिक च्यारि र इनिके प्रतिपक्षी व्यारि, ते अपने नाम ही तैं प्रसिद्ध हैं । सोही कहिए है - क्षिप्र शीघ्र कौं कहिए | जैसे शीघ्र पडती जलधारा वा जलप्रवाह । बहुरि अनिसृत, गूढ कौं कहिए जैसे जल विषे मगन हूवा हाथी । बहुरि क्त, विना कहे कीं कहिए, जैसे बिना ही कहे किछु अभिप्राय ही लें जानने में आवे । बहुरि ध्रुव अचल कौं वा बहुत काल स्थायी कौं कहिए; जैसे पर्वतादि । बहुरि क्षिप्र ढीले कीं कहिए। जैसे मंद चालता घोटकादिक । बहुरि निसृत, प्रगट कौं कहिए; जैसे जल तें निकस्या हूवा हाथी । बहुरि उक्त कहे को कहिए, जैसे काहूनें कह्या यहु घट है । बहुरि ध्रुव, चंचल वा विनाशीक को हिए; जैसे क्षणस्थायी बिजुरी श्रादि । से बाहर प्रकार मतिज्ञान के विषय हैं ।
1