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सम्यग्ज्ञानन्त्रिक भाषाठीका )
जो परिमाण होइ, तितने काल विर्षे जो नरक गति विर्षे जीवनि का जो परिमारण कहा, तितने सर्व जीव पाइए, तो लोभ कषाय के काल का समयनि का जो परिमाण होइ है. तितने काल विर्षे केते जीव पाइए ? असे त्रैराशिक कीएं, प्रमाणराशि सर्वकषायनि का काल, फलराशि सर्व नास्कराशि, इच्छाराशि लोभकषाय का काल तहां प्रभारणराशि का भाग फलराशि को देंइ, इच्छाराशि करि गुरौँ जो लब्धराशि का परिमाण आवै, तितने जीद इकधाण जातेमका ति दि जानने । बहुरि जैसे ही प्रमाणराशि, फलराशि, पूर्वोक्त इच्छाराशि मायादि कषायनि का काल कीएं, लन्धराशि मात्र अनुक्रमते मायावाले, मानवाले, क्रोधवाले जीवनि का परिमाण नरक गति विर्षे जानना।
- इहां दृष्टांत -- जैसे लोभ का काल का प्रमाण एक (१), माया का च्यारि (४), मान का सोलह (१६), क्रोध का चौसठ (६४) सब का जोड दीएं पिच्यासी भए । नारकी जीवनि का परिमारण सतरा से ( १७०० ), ताहि पिच्यासी का भाग दीएं, पाए बीस (२०), ताकौं एक करि गुरणे बीस (२०)हुवा, सो लोभ कषायवालों का परिमाण है । च्यारि करि गुणें असी (८०) भए सो मायावालों का परिमारण है। सोला करि गुणें तीन सौ बीस (३२०) हुवा सो, मानवालों का परिमाण है चौसठि करि मुणे बार से असी (१२८०) भए सो, क्रोधवालों का परिमारण है; असे दृष्टांत करि यथोक्त नरक गति विर्षे जीव कहे। अंस ही देव गति विर्षे जेता जीवनि का परिमाण है, ताहि सर्व कषायनि के काल का जोया हूवा समयनि का परिमारण का भाग दीएं, जो परिमारण पावै, ताहि अनुक्रमतें क्रोध, मान, माया, लोभ का काल का परिमाण करि गुरणे, अनुक्रमतें क्रोधवाले, . मानवाले, मायावाले, लोभवाले जोवनि का परिमारा देव मति विर्षे जानना ।
गरतिरिय लोह-माया-कोहो माणो बिइंदियादिश्च । प्रावलिअसंखभज्जा, सगकाल वा समासेज्ज ॥२६॥
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नरतिरश्चोः लोभमायाक्रोधों मानो द्वींद्रियादिवत् ।
आवल्यसंख्यभाज्याः, स्वकालं वा समासाद्य ॥२९८।। टोका - मनुष्य-तिर्यंच गति विर्षे लोभ, माया, क्रोध, मानवाले जीवनि को संख्या पूर्व इंद्रिय-मार्गरणा का अधिकार विषं जैसे बैद्री, सेंद्री, चौइंद्रो, पचेंद्री विर्षे