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। पोस्मसार जीवकामगाया ३०४
बहुरि हाथी, ऊंट आदि के पकड़ते निमित्त खाडा के ऊपरि गाठि का विशेष लीएं जेबरा की रचनारूप विशेष, सो बंध कहिए ।
अादि मन्द करि खीनि का पांख लगने निमित्त ऊंचे दंश के ऊपरि चिगटास लगावना, सो बंध वा हरिणादिक का सींग के अग्रभाग सूत्र की मांठि देना इत्यादि विशेष जानने । जैसें जीवनि के मारणे, बांधने के कारणरूप कार्यनि विर्षे अन्य के उपदेश विना ही स्वयमेव बुद्धि प्रवर्त; सो कुमति ज्ञान कहिए।
उपदेश तें प्रवतें तो कुश्रुत ज्ञान हो जाइ । तातै विना ही उपदेश असा विचाररूप विकल्प लीएं हिंसा, अनत, स्तेय, अब्रह्म, परिग्रह का कारण प्रातरौद्र ध्यान कौं कारण शल्य, दंड, गारव अादि अशुभोपयोगों का कारण जो मन, इंद्रिय करि विशेष ग्रहणरूप मिथ्याज्ञान प्रवर्त; सो मति प्रज्ञान सर्वज्ञदेव कहैं हैं ।
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आभीयमासुरक्खं, भारह-रामायणादि-उवएसा । तुच्छा असाहणीया, सुय-अण्णाणं त्ति णं बेति ॥३.०४॥?
प्राभीतमासुरक्षं भारतरामायणाशुपदेशः ।
सुच्छा असाधनीयाः श्रुताज्ञानमिति इदं अबति ।।३०४॥ टीका - आभीताः कहिए ( समंतपनै ) भयवान, जे चौरादिक, तिनिका शास्त्र सो पाभीत हैं । बहुरि असु जे प्रारण, तिनिको चौरादिक तें रक्षा जिनि ते होई, असे कोटपाल, राजादिक, तिनिका जो शास्त्र सो असुरक्षा है । बहुरि कौरव पांडवों का युद्धादिक वा एक भार्या के पंच भर्ता इत्यादिक विपरीत कथन जिस विर्षे पाइए, असा शास्त्र सो भारत है । बहुरि रामचंद्र के बानरों की सेना, रावण राक्षस है, तिनिका परस्पर युद्ध होना इत्यादिक अपनी इच्छा करि रच्या हवा शास्त्र, सो रामायण है। आदि शब्द ते जो एकांतवाद करि दुषित अपनी इच्छा के अनुसार रच्या हुवा शास्त्र, जिनिविर्षे हिंसारूप यज्ञादिक गृहस्थ का कर्म है, जटा धारण, त्रिदंड धारणादिरूप तपस्वी का कर्म है, सोलह पदार्थ हैं; वा छह पदार्थ हैं; वा भावन, विधि, नियोग, भूत ए च्यारि हैं; वा पचीस सत्त्व हैं; था भद्वैत ब्रह्म का स्वरूप है दा सर्व शून्य है इत्यादि वर्णन पाइए है; ते शास्त्र 'तुच्छाः कहिए परमार्थ
१. पदवंडागम - धवला पुस्तक १, माथा १८०, पृष्ठ ३६० ।