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सम्यानचन्द्रिका भाषाका ]
टोका - जिनि जीवनि का स्पर्श विर्षे ज्ञान है, असा चिह्न होइ, ते एकेंद्रिय हैं । बहरि जिनिका स्पर्श अर रस विषे ज्ञान है, असा चिह्न होइ ते जीव द्वींद्रिय हैं । बहुरि जिनिका स्पर्श, रस, गंध विष ज्ञान है, असा चिह्न होइ, ते जीव तेइन्द्रिय हैं। बहरि जिनिका स्पर्श, रस, गंध, वर्ण विज्ञान है; असा चिह्न होइ, ते जीव चतुरिंद्रिय हैं । बहुरि जिनिका स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, शब्द विर्षे ज्ञान है, असा चिह्न होइ, ते. जीव पंचेंद्रिय हैं । ते सर्व जीव अपने-अपने भेद करि जुदे हैं -- ऐसे जानने ।
आमैं एकेंद्रियादिक जीवनि के केती-केती इंद्री संभव हैं, सों कहै हैंए इंदियस्स फुसरणं, एक्कं वि य होदि सेसजीवाणं । होति कमउड्डियाई, जिन्भाधाणच्छिसोत्ताई ॥१६७॥
एफेंद्रियस्य स्पर्शनमेकमपि च भवति शेषजीवानां ।
भवंति क्रमधितानि, जिहाघ्राणाक्षिश्रोत्राणि ।।१६७॥ टोका - इंद्रिय पंच हैं। सिनि विर्षे सर्व शरीर कौं स्पर्शन कहिए । जिह्वा कौं रसना कहिए, नासिका कौं धारण कहिए, नेत्र कौं चक्षु कहिए, कर्ण की श्रोत्र काहिए। .
___ तहां एकेद्रिय जीव के एक स्पर्शन इंद्री ही है। बहुरि अवशेष जीवनि के एक-एक बधता इन्द्रिय अनुक्रमतें जानने । सो बेइंद्री के रसना इंद्री बध्या, तेइंद्री के प्राण इंद्री बध्या, चतुरिद्रिय के चक्षु इन्द्रिय बध्या, पंचेंद्रिय के श्रोत्र इंद्रिय बध्या। जाते एक है इन्द्रिय जिनिक, ते जीव एकैद्रिय हैं । दोय हैं इन्द्रिय जिनिक, ते द्वींद्रिय हैं । तीन हैं इन्द्रिय जिनिकै, ते त्रींद्रिय हैं । च्यारि हैं इन्द्रिय जिनके, ते चतुरिद्रिय हैं। पांच हैं इन्द्रिय जिनके, ते पंचेंद्रिय हैं । ऐसे निरुक्ति हो है ।
पार्टी स्पर्शनादि इन्द्रियनि के विषयभूत क्षेत्र का परिमारण कहै हैं -- धणवीसउदसयकदी, जोयणछादालहीरगतिसहस्सा। अट्ठसहस्स धणूरणं, विसया बुगुणा असणिण त्ति ॥१६॥
धनुर्विशत्यष्टदशककृतिः योजनषट्चत्वारिशमानसिंहस्राणि । अष्टसहस्र धनुषा, विषया द्विगुरणा असंझीति ।। १६८ ॥
१. पट्खंगाम-धवला पुस्तक १, पृष्ठ २६१, माथा १४२ ।