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उस्मातामा भाग 1
{ ४२१ कोहादिकसायाणं, चउचउदसवीस होति पदसंखा। सत्तोलेस्साआउगबंधाबंधगदभेदेहि ॥२६॥
क्रोधादिकषायाणो, चत्वारः चतुर्वश विंशतिः भवंति पदसंख्याः।
शक्तिलेश्यायुष्कबंधाबंक्ष्यसभेदः 'टीका - क्रोध-मान-माया-लोभ कषाय, तिनकी शक्ति स्थान के भेद करि च्यारि संख्या है । लेश्या स्थान के भेद करि चौदह संख्या है। आयुर्बल के बंधने के प्रबंधने के स्थान भेद करि बीस संख्या है ।
ते स्थान प्राग कहिए हैं... सिल-सेल-वेणुमूल-क्किमिरायादी कमेण चत्तारि । कोहादिकसायाणं, सत्ति पडि होति णियमेण ॥२६॥
शिलाशैलवेणुमूलक्रिमिरामादीनि कमेस चत्वारि । क्रोधाविकषायाखां, शक्ति प्रति भवंति नियमेन ॥२९१॥
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टीका - क्रोधादिक जे कषाय, तिनिकै शक्ति कहिए अपना फल देने की सामर्थ्य, ताकी अपेक्षा ते निश्चय करि च्यारि स्थान हैं । ते अनुक्रम ते तीनतर, तीव, मंद, मंदतर, अनुभागरूप का उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, अजघन्य, जवन्य अनुभाग रूप जानने । सहा शिलाभेद, शैल, वेणुमूल, क्रिमिराग ए तो उत्कृष्ट शक्ति के उदाहरण जानने । मादि शब्द ते पूर्वोक्त अनुत्कृष्टादि शक्ति के उदाहरण दुष्टांतमात्र कहे हैं, ते सर्व जानने । ए दृष्टांत प्रगट व्यवहार का अवधारण करि हैं। पर परमागम का व्यवहारी प्राचार्यनि करि मंदबुद्धी शिष्य' समझावने के अर्थि व्यवहार रूप कीएं हैं । जाते दृष्टांत के बल करि ही मंदबुद्वी समझे हैं । ताते दृष्टांत की मुख्यता करि जे दृष्टांत के नाम, तेई शक्तिनि के नाम प्रसिद्ध कीएं हैं। . .. ... किण्हं सिलासमारणे, किण्हादी छक्कमेण भूमिम्हि । - छक्कादी सुक्को त्ति य, धूलिम्मि जलम्मि सुक्कक्का ॥२६२॥
कृष्णा शिलासमाने, कृष्णादयः षट् क्रमेण भूमौ । षटकादिः शुल्केति च धूलौ जले शुक्लका ॥२९२॥