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मार्ग
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[ गोम्मटसर जीवकान्ड गाथा २५८
श्रायाम का प्रमाण कह्या, तामै श्रधा गुणहानि आयाम का प्रमाण मिलाए, व्यर्धसुहानि हो है । ता किछू वाटि संख्यात गुणी पल्य की वर्गशलाका करि अधिक जो गुणहानि का अठारहवां भाग का प्रमाण सो घटावना, घटाएं जो प्रमाण होइ, dier नाम इहां किचिदून उदद्यर्धगुरगहानि जानना । ताकरि समयप्रबद्ध के विषै जो परमाणूनि का प्रमाण कला, ताकौ गुरौं, जो प्रमाण होइ सोइ त्रिकोण यंत्र वि प्राप्त सर्व निषेकनि के परमाणू जोडे, प्रसारण हो है । जैसे अंक संदृष्टि करि कीया.. हूवा त्रिकोणयंत्र, ताकी सर्वपंक्ति के अंकन करें जोड़ें, इकहतरी हजार तीन से च्यारि हो हैं । यर गुणहानि श्रायाम आठ, तामैं श्राधा गुणहानि आयाम च्यारि मिलाए,
वर्धगुणहानि का प्रमाण बारह होइ, ताकरि समयबद्ध तरेसठ सौ को गुण, पिचहत्तर हजार छ से होइ । इहां त्रिकोण यंत्र का जोड़ घटता भया । तातें किंचि गुणहानि गुरित समयप्रबद्ध प्रमाण सत्त्व कहा । तहां ब्द्यर्धगुणहानि विष उनका प्रमाण दाष्टति विषे महत्प्रमाण है । तातें पूर्वोक्त जानना ।
इहां अंकसंदृष्टि दृष्टांत विषै गुणहानि का अठारहवां भाग करि गुरिणत समयबद्ध का प्रमाण अठाईस से, तामै गुणहानि बाठ, नानागुणहानि छै करि गुणित समयबद्ध का तरेसठवां भाग, अडतालीस सैं, तामैं किचित् अधिक आधा समयप्रबद्ध का प्रमाण तेतीस से च्यारि घटाइ थवशेष चौदह से छिनवे जोडें, बियालीस # छिनवे भए सो व्यर्धगुणहानि गुणित समयबद्ध विषै घटाएं, त्रिकोण यंत्र का जोड हो है ।
बहुरि इस त्रिकोण यंत्र का जोड इतना कैसें भया ? सो जोड देने का विधान हीन-हीन संकलन करि वा अधिक अधिक संकलन करि वा अनुलोम-विलोम संकलन करि तीन प्रकार का है। तहां घटता घटता प्रमाण लीएं निषेकनि का क्रम तैं जोडना, सो हीन-हीन संकलन कहिए । बघता-बघता प्रमाण लीए निषेकनि का क्रम तें जोडना, सो अधिक अधिक संकलन कहिए। होन प्रमाण लीए वा अधिक प्रमाण लोएं निषेकनि का जैसे होइ तैसे जोड़ना, सो अनुलोम-विलोम संकलन कहिए सो से जोड़ देने का विधान में संदृष्टि अधिकार विषै लिखेंगे; तहां जानना । इहां जोड विषै संदृष्टि समझने में व श्रावती; तातें नाहीं लिख्या है । असें प्रयु बिना कर्मप्रकृतिनि का समय-समय प्रति बंध, उदय, सत्व का लक्षण कह्या ।