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भावार्थ -- जैसे किसी का किंकर पालती सो खेत विर्षे बोया हूवा बीज, जैसे बहुत फल की प्राप्त होइ वा बहुत सीव पर्यंत होइ, तसे हलादिक तें धरती का फाडना इत्यादिक कृषिकर्म कौं करै है।
__ तैसे संसारी जीव का किंकर क्रोधादि कषाय नामा पालती, सो प्रकृति, प्रदेश, स्थिति, अनुभाग रूप कर्म का बंध, सो ही भया खेत, तीहिं विर्षे मिथ्यात्वादिक परिणाम रूप बीज, जैसे कालादिक की सामग्री पाइ, अनेक प्रकार सुख-दुःख रूप बहुत फल कौं प्राप्त होइ वा अनंत संसार पर्यंत फल कौं प्राप्त होइ । तैसे कार्य को करे, ताते इन क्रोधादिकनि का कषाय असा नाम कहा, 'कृषि विलेखने' इस धातु का अर्थ करि कषाय शब्द का निरुक्तिपूर्वक निरूपण प्राचार्य करि कीया है।
सम्मत्तदेससयलचरित जहक्खाद-चरणपरिणामे । घावंति वा कषाया, चउसोलअसंखलोगमिवा ॥२८३॥ सम्यक्त्वदेशसकलचरित्रयथाख्यातचरमपरिणामान्।
घातयंति वा कषायाः, चतुः षोडशासंख्यलोकमिताः ॥२८३।।
टीका - अथवा 'कषतीति कषायाः' जे हते, घात करें, तिनिकों कषाय कहिए। सो ए क्रोधादिक हैं, ते सम्यक्त्व वा देश चारित्र वा यथाख्यात चारित्र रूप आत्मा के विशुद्ध परिणामनि कौं पाते हैं । ताते इनिका कषाय असा नाम है । यहु कषाय शब्द का दूसरा अर्थ अपेक्षा लक्षण कह्या ।
तहां अनंतानुबंधी क्रोधादिक हैं, तो तत्वार्थ श्रद्धानरूप सम्यक्त्व कौं घाते हैं, जातें अनंत संसार का कारण मिथ्यात्य वा अनंत संसार अवस्थारूप काल, ताहि अनुवंनंति कहिए संबंधरूप करें; तिनकौं अनंतानुबंधी कहिए ।
बहुरि अप्रत्याख्यानावरण क्रोधादिक कहे, ते अणुव्रतरूप देश चारित्र कौं धातें - हैं, जाते अप्रत्याख्यान कहिए ईषत् प्रत्याख्यान किंचित् त्यागरूप अणुव्रत, ताकौं आवृण्वंति कहिए पावरे, नष्ट करें; ताकौं अप्रत्याख्यानावरण कहिए। .
बहुरि प्रत्याख्यानावरण क्रोधादिक हैं; ते महाव्रतरूप सकल चारित्र की बातें हैं; जाते प्रत्याख्यान कहिए सकल त्यागरूप महादत, ताकौं श्रावृण्वंति कहिए पावर, नष्ट करें, ताकौं प्रत्याख्यानावरण कहिए ।