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सम्प्रज्ञानश्वद्रिका भाषाढीका ]
बहरि जैसें दूलि विषै की हुः तील, तर बोस हाल गएं बिना मिलल नाही, तैसें थोरी काल गएं बिना जो क्षमारूप मिलन को प्राप्त न होई, असा अजघन्य शक्ति लिए क्रोध, सो जीव को मनुष्य गति विर्षे उपजावै है।
बहुरि जैसे जल विष करी हुई लीक, बहुत थोरा काल गएं बिना मिल नाही, तैसें बहुत थोरा काल गएं बिना जो क्षमारूप मिलन को प्राप्त न होइ; असा जो जघन्य शक्ति लीएं क्रोध, सो जीव कौं देव गति विष उपजावै है । तिस-तिस उत्कृष्टादि शक्ति युक्तः क्रोधरूप परिणम्या जीव, सो तिस-तिस नरक आदि गति विर्षे उपजने कौं कारग प्रायु-गति प्रानुपूर्वी आदि प्रकृतिनि कौं बांध है; असा अर्थ जानना।
इहां राजि शब्द रेखा वाचक जानना; पंक्ति वाचक न जानना । बहुरि इहां शिला भेद. आदि उपमान अर उत्कृष्ट शक्ति प्रादि क्रोधादिक उपमेय, ताका समानपना अतिधना कालादि गएं बिना मिलना न होने की अपेक्षा जानना।
सेलटिट्-कटठ्-वेत्ते, रिणयभेएणणुहरंतो माणो।. ..' णारय-तिरिय-णरामर-गईसु उपायओ कमसो ॥२५॥ शैलास्थिकाष्ठवेत्रान् निजभेनानुहरन् मानः ।
नारकतिर्यग्नरामरगतिथूत्पादकः क्रमशः ।।२८५॥ टोका - शैल, अस्थि, काष्ठ, बेंत समान जो अपने भेदनि करि उपमीयमान च्यारि प्रकार मान कषाय, सो क्रम ते नारक, तिर्यंच, मनुष्य, देव गति विर्षे जीव कौं उपजावै है । सो कहिए है --
- जैसै शैल जो पाषाण सो बहत घने काल "बिना नमावने योग्य न हो; तैसे बहुत धने काल बिना जो विनय रूप नमन की प्राप्त न होई, असा जो उत्कृष्ट शक्ति लीएं मान, सो जीवनि को नरक गति विर्षे उपजा है।
.. बहुरि जैसें अस्थि जो हाड, सो धने काल बिना नमावने योग्य न होइ; तैसे घने काल - बिना जो विनयरूप नमन कौँ प्राप्त न होइ.।, असा जो अनुल्कृष्ट शक्ति लीएं मान, सो जीव कौं तिथंच गति विर्षे उपजाव है।
१ षट्खंयम पवला पुस्तक १,०३५२, गा० सं०.१७५