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दसवां अधिकार : वेद-मार्गणा-प्ररूपणा
॥ मंगलाचरण । दूरि करत भव ताप सब, शीतल जाके बैन ।
तीन वनमारका नौं, सोसल जिग सुखदम ॥ आगें शास्त्र का कर्ता आचार्य छह गाथानि करि वेदमार्गरणा कौं प्ररूपै हैं - पुरिसिच्छिसंढवेदोदयेण पुरिसिच्छिसंढओ भावे। णामोदयण दवे, पाएण समा कहिं विसमा ॥ २७१ ॥
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परुषस्त्री पंढवेदोदयेन पुरुषस्त्रीषंढाः भावे । नामोदयेन द्रव्ये, प्रायेण समाः क्वचिद् विषमाः ॥२७॥
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टोका - चारित्र मोहनीय का भेद नोकषाय, तीहरूप पुरुषवेद, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद नामा प्रकृति, तिनिके उदय ते भाव जो चैतन्य उपयोग, तीहि विर्षे पुरुष, स्त्री, नपुंसकरूप जीव हो है । बहुरि निर्माण नामा नामकर्म के उदय करि संयुक्त अंगोपांग का विशेषरूप नामकर्म की प्रकृति के उदय से, द्रव्य जो पुद्गलीक पर्याय, तीहिंविर्षे पुरुष, स्त्री, नपुंसक रूप शरीर हो है । सो ही कहिए है-पुरुषवेद के उदयतें स्त्री का अभिलाषरूप मैथुन संज्ञा का धारी जीव, सो भाव पुरुष हो है । बहुरि स्त्री वेद के उदय ते पुरुष का अभिलाषरूप भैथुन संज्ञा का धारक जीव, सो भाव स्त्री हो है। बहुरि नपुंसकवेद के उदय ते पुरुष अर स्त्री दोऊनि का युगपत् अभिलाषरूप मैथुन संज्ञा का धारक जीव, सो भाव नपुंसक हो है ।
बहुरि निर्माण नामकर्म का उदय संयुक्त पुरुष बेदरूप आकार का विशेष लीएं, अंगोपांग नामा नामकर्म का उदय ते भूछ, डाढी, लिंगादिक चिह्न संयुक्त शरीर का धारक जीव, सो पर्याय को प्रथम समय ते लगाय अन्त समय पर्यंत द्रव्य पुरुष
बहुरि निर्माण नाम का उदय संयुक्त स्त्री वेदरूप आकार का विशेष लीएं अंगोपांग नामा नामकर्म के उदयतै रोम रहित मुख, स्तन, योनि इत्यादि चिह्न संयुक्त