________________
..
..
....
..
४०२
[ गोम्मटसार जीवकाण्ड माथा २६६ इहां कार्माण काययोगी तो सब तै स्तोक हैं । इनि तें असंख्यात गुणें प्रौदारिकमिश्र काययोगी हैं। इन ते संख्यातगुणे प्रौदारिक काययोगी हैं । इहां भी जो तीन काययोग के काल विर्षे सर्व एक योगी जीय पाइए, तो कारण शरीर आदि विवक्षित के काल विर्षे केते पाइए? असे त्रैराशिक हो है। तहां तीनों काययोगनि का काल सो प्रमाणराशि, एक योगी जीवनि का परिमाण सो फलराशि, कार्मणादिक विवक्षित का काल मो इच्छाराशि, फल राशि कौं इच्छाराशि करि गुरणे, प्रमाण राशि का भाग दीएं, जो-जो प्रमाण पावै, तितने तितने विवक्षित योग के धारक जीव जानने । क्रमशः इस शब्द करि प्राचार्य ने कहा है कि धवल नामा प्रथम सिद्धांत के अनुसारि यह कथन कीया है । या करि अपना उद्धतता का परिहार प्रगट कीया है ।
ENDS
S
सोवक्कमाणुवक्कमकालो संखज्जवासठिदिवाणे । आवलिअसंखभागों, संखेज्जावलिपमा कमसो ॥२६६।।
सोपक्रमानुपक्रमकालः संख्यातवर्षस्थितिवाने । आवल्यसंख्यभामा, संख्यातावलिप्रमः क्रमशः ॥२६६॥
टीका - वैक्रियिक मिश्र पर वैक्रियिक काययोग के धारक जे जीव, तिनकी संख्या च्यारि गाथानि करि कहैं हैं । संख्यात वर्ष की है स्थिति जिनकी असे जे मुख्यता करि दश हजार वर्ष प्रमाण जघन्य स्थिति के धारकवान कहिए व्यंतर देव, तिनि विर्षे उनकी स्थिति के दोय भाग हैं; एक सोपक्रम काल, एक अनुपक्रम काल ।
___ तहां उपक्रम कहिए उत्पत्ति, तीहि सहित जो काल, सो सोपक्रम काल कहिए । सो आवलो के असंख्यालवें भागमात्र है; जो व्यंतर देव उपजिवो ही करें, वीपि कोई समय अंतर नहीं पड़े, तो प्रावली का असंख्यातवा भाग प्रमाण काल पर्यंत उपजिवो करें।
बहुरि जो उत्पत्ति रहित काल होइ; सो अनुपक्रम काल कहिए । सो संख्यात प्रावली प्रमाण है। बारह मुहूर्तमात्र जानना । जो कोई ही ध्यंतर देव न उपज, तौ बारह मुहूर्त पर्यंत न उपजै, पीछे कोई उपजै ही उपजै; असें अनुक्रम में काल जानने ।
im
- AS
hartar
T HATRNETRAL
.