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सम्यानन्दिका भाषाटोका ]
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इहां प्रसंग पार निकलत्रय निमें बैंती मा बारा वर्ष, लेंडी का गुणचास दिन, चौद्री का छह महिना प्रमाण है। असे उत्कृष्ट प्रायु, बल का परिमारण कह्या । तीहि विर्षे अंतर्मुहूर्त काल विर्षे तौ अपर्याप्त अवस्था है। अवशेष काल विर्षे पर्याप्त अवस्था है । सातै अपर्याप्त अवस्था का काल से पर्याप्त अवस्था का काल संख्यातगणा जानना । तहां पृथ्वी कायिक का पर्याप्त-अपर्याप्त दोऊ कालनि विर्षे जो सवे सूक्ष्म जीव पाइए तो अंतर्मुहूर्त प्रमाण अपर्याप्त काल वि. केते पाइए ? असे प्रमाण राशि पर्याप्त-अपर्याप्त दोऊ कालनि के समपनि का समुदाय, फलराशि सूक्ष्म जीवनि का प्रमाण, इच्छाराशि अपर्याप्त काल का समयनि का प्रमाण, तहाँ फल करि इच्छा कौं गुरिण, प्रमाण का भाग दीएं, लब्धराशि का परिमाण पावै; तितने सूक्ष्म पृथ्वीकायिक अपर्याप्त जीव जानने । बहुरि प्रमाण राशि, फलराशि, पूर्वोक्त इच्छाराशि पर्याप्त काल कीएं लब्धराशि का जो परिमाण आवै, तितने सूक्ष्म पृथ्वीकायिक पर्याप्त जीवनि का परिमारण. जानना। ताही ते संख्यात का भाग दीएं, एक भाग प्रमाण अपर्याप्त कहे । अवशेष (बहु) भाग प्रमाण पर्याप्त कहे हैं । अंसें ही सूक्ष्म अपकायिक, तेजकायिक, वातकायिक, साधारण वनस्पतिकायिक विर्षे अपनाअपना सर्व काल की प्रमाणराशि करि, अपने-अपने प्रमाण की फलराशि करि. पर्याप्त वा अपर्याप्त काल की इच्छाराशि करि लब्धराशि प्रमाण पर्याप्त वा अपर्याप्त जीवनि का प्रमाण जानता। इहां पर्याप्त वा अपर्याप्त काल की अपेक्षा जीवनि का परिमाण सिद्ध हूबा है।
पल्लासंखेज्जवहिद, पदरंगलभाजिदे जगप्पदरे । जलभूरिणपवादरया, पुण्णा आवलिअसंखभजिदकमा ॥२०६॥ पल्यासंख्यावहितप्रतरांगुलभाजिते जमत्प्रतरे। ..
जलभूनिपवादरकाः, पूर्णा प्रावल्यसंख्यभाजिलक्रमाः ॥२०९॥
टीका --पल्य के असंख्यातवां भाग का भाग प्रतरांगुल कौं दीयें, जो परिमाण - पावै, ताका भाग जगत्प्रतर को दीएं, जो परिमारण आय, तितना बादर अपकायिक पर्याप्त जीवनि का प्रमाण जानना । बहुरि इस राशि कौं प्रावली का असंख्यातवां भागा का भाग दीएं, जो परिमारण प्राव, तितना बादरं पृथ्वी कायिक पर्याप्त जीवनि का प्रमारण जानना। बहरि इस राशि को भी प्रावली का असंख्यातवां भाग का भाग दीएं; जो परिमारण पावै, तितना बादर प्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पती पर्याप्त