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। गोम्मटसार जीयकाण्ड गाथा २१८-२१६
क्रिया सिद्ध हो है, असा विशेष निर्णय न भया, तातै सत्य भी न कह्या जाय, बहुरि सामान्यपने प्रतिभास्या तातें असत्य भी न कह्या जाय ताते याकौं अतुभय कहिए । - सै च्यारि प्रकार पदार्थनि विर्षे मन की का वचन की प्रवृत्ति होइ सो च्यारि प्रकार मनोयोग का च्यारि प्रकार बचनयोग जानने ।
इहां घट विर्षे घट को विकल्प, सो सत्य, अर घट विर्षे पट का विकल्प, सो असत्य, पर कुंडी विर्षे जलधारण करि घट का विकल्प, सो उभय पर संबोधन आदि विर्षे हे देवदत्त ! इत्यादि विकल्प सो अनुभय जानना ।
आमैं सत्य पदार्थ हैं गोचर जाकै, असा मनोयोग सो सत्य मनोयोग; इत्यादिक विशेष लक्षण च्यारि गाथानि करि कहैं हैं -
सम्भावमणो सच्चो, जो जोगो तेण सच्चमणजोगी। तन्धिवरीओ मोसो, जाणुभयं सच्चमोसोस्तेन ति ॥२१॥ . सद्भावमनः सत्यं, यो योगः स तु सत्यमनोयोगः । ....
तद्विपरीतो मृषा, जानीहि उभयं सत्यभूषेति ॥२१८॥ टीका - 'सद्भावः' कहिए सत्पदार्थ हो है गोचर जाका, असा जो मन सत्य पदार्थ के ज्ञान उपजावनेकी शक्ति लीएं भाव-मन होइ, तीहि सत्यमन करि निपज्या जो चेष्टा प्रवर्तन रूप योग, सो सत्यमनोयोग कहिये ।
बहुरि असे ही विपरीत असत्य पदार्थरूप विषय के ज्ञान उपजावने की शक्ति रूप जो भाव-मन, ताकरि जो चेष्टा प्रवर्तन रूप योग होइ, सो असत्यमनोयोग
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बहुरि युगपत् सत्य-असत्य रूप पदार्थ के ज्ञान उपजाने की शक्तिरूप जो भाव-मन, ताकारि जो प्रवर्तन रूप योग होइ, सो उभयमनोयोग कहिये-जैसे हे भव्य ! तू जानि ।
ण य सच्चमोसजुत्तो, जो दु मणो सो असच्चमोसमणो।
जो जोगो तेण हवे, असच्चमोसो दु मरणजोगो २ ॥२१६॥ १- पटखंडागम-धवला पुस्तक १, पृ. सं. २६३, मा. सं. १५३ । कुछ पाउनेद-समावो सचमणो, . सब्धियरोदो, सच्चमस्सं ति ।
२-पंद्रखंगम - धवला पुस्तक-१ पृष्ठ सं. २०४, गा."सं.१५७।