________________
[ गोम्मटसार जीवका गाथा २४५-२४६
६७ ]
आगे जे ए श्रदारिकादिक शरीर कहै, तिनिका समयप्रबद्धादिके की संख्या 'दtय गाथानि करि कहिए हैं -
परमाणू हि श्रतहि, वग्गणसष्णा हु होदि एक्का हु । ताहि अरगतहि पियमा, समयबद्धों हवे एक्को ॥ २४५ ॥
परमाणुभिरतः वर्गखासंज्ञा हि भवत्येका हि । ताभिरत नियमात् समयप्रवद्धो भवेदेकः ॥ २४५॥
टीका- सिद्धराशि के अनंत भाग पर प्रभव्यराशि स्यौं अनंतगुरणा असा जो मध्य अनंतानंत का भेद, तींहि प्रमाण पुद्गल परमाणूनि करि जो एक स्कंध होइ, सो वर्गणा, जैसा नाम जानना । संख्यात वा श्रसंख्यात परमाणूनि करि वर्गरणा न हो है । जातै यद्यपि श्रागें पुद्गल वर्गरणा के तेईस भेद कहेंगे । तहां अणुवर्गरणा, संख्यातामुवर्गणा, असंख्याताणुवर्गणा आदि भेद हैं । तथापि इहां श्रदारिक आदि शरीरनि का प्रकरण विषै आहारवर्गणा वा तैजसवर्गरणा वा कामणवर्गणा का हो ग्रहण जानना । बहुरि सिद्धनि के अनंतवे भाग वा अभव्यानि ते अनंतगुणी जैसी मध्य अनंतानंत प्रमाण वर्गणा, तिनि करि एक समयप्रबद्ध हो है । समय विषै वा समय करि यहु जीव कर्म-नोकर्मरूप पूर्वोक्त प्रसारण वर्गणानि का समूहरूप स्कंध करि संबंध कर है । तातें थाकौं समयप्रबद्ध कहिए है । सा वर्गा का वा समयप्रबद्ध का भेद स्याद्वादमतं विष हैं। अन्यभत विष नाहीं । यह विशेष नियम शब्द करि जानना ।
इहां कोऊ प्रश्न करें कि एक ही प्रमाण को सिद्धराशि का अनंतयां भाग वा भव्यराशि है अनंतगुणा अँसे दोय प्रकार कह्या, सो कौन कारण ?
ताकां समाधान कि सिद्धराशि का अनंतवां भाग के अनंत भेद हैं। तहां श्रभव्यराशि तं अनंतगुणा जो सिद्धराशि का अनंत भाग होड, सो इहां प्रमाण जानना 1 से अल्प- बहुत्व करि तिस प्रमाण का विशेष जानने के अर्थ दोय प्रकार ह्या है | अन्य प्रयोजन नाहीं ।
तार्ण समयबद्धा, सेडिअसज्जभागगुणिदकमा
पंतेण य तेजदुगा, परं परं हींदि सुहमें खु ॥ २४६॥