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[ मोम्मटसार जीवकाण्ड गरथा २५३ कीएं लब्धराशि संख्यात पल्य को पल्य की वर्गशलाका के अर्धच्छेदनि करि हीन पल्य के अर्धच्छेदराशि का भाग़ दीएं, जितना प्रावे तितना जानना । असें लब्धराशि मात्र एकमुणहानि का प्रायाम जानना । इतने-इतने समयनि के समूह का नाम एकगुणहानि है । सर्व स्थिति विर्षे जेती गुणहानि पाइए, तिस प्रमाण का नाम नानागुणहानि है; असा इहां भावार्थ जानना |
बहुरि नानागुणहानि का जेता प्रमाण तितने दुवे मांडि, परस्पर गुरणे, जितना प्रमाण होइ, सो अन्योन्याभ्यस्तराशि जानना। जैसे नानागणहानि का प्रमारण छह सो छह का विरलन करि एक-एक जायगा दोय के अंक मांडि, परस्पर सुगौं बौसठ होंड; सोई योन्याशास्तगाशि का प्रमाण जानना । तैसे ही औदारिक प्रादि शरीरनि की स्थिति विर्षे जो-जो नानागुणहानि का प्रमाण कह्या, ताका विरलन करि एक-एक बखेरि पर एक-एक जायगा दोय-दोय देइ, परस्पर गुरणे, अपना-अपना अन्योन्याभ्यस्तराशि का प्रमाण हो है । तहां लोक के जेते अर्धच्छेद हैं; तितने दूवेनि को परस्पर गुरणे, लोक होइ । तो इहां नानागुणहानि प्रमाण दूवे मांडि, परस्पर गुणें, केते लोक होइ ? असे त्रैराशिक करना। तहां लब्धराशि ल्यावने के अर्थि सूत्र कहिए है--
दिण्णच्छेदेरणवाहिद, इष्टुच्छेदेहि पयदविरलणं भजिदे ।।
लद्धमिदइट्ठरासी, णण्णोष्णहदीए होदि पयवधणं ॥२१४॥ जैसा कायमार्गणा विर्षे सूत्र कहा था, ताकरि इहां देय राशि दोय, ताका अर्धच्छेद एक ताका भाग इष्टच्छेद लोक के अर्धच्छेद कौं दीएं, इतने ही रहे, इनि लोक के अर्धच्छेदनि के प्रमाण का भाग, औदारिक शरीर की स्थिति संबंधी नानामुणहानि के प्रमाण कौं दीएं, जो प्रमाण पावै, तितने इष्टराशिरूप लोक. मांडि, परस्पर गुणें, जो लब्धि प्रमारण होइ, तितना औदारिक शरीर की स्थिति विर्षे अन्योन्याभ्यस्त राशि का प्रभारण' असंख्यातलोकमात्र हो है । बहुरि सैंसे ही वैक्रियिक शरीर विर्षे नानागुणहानि का प्रमाण कौं लोक का अर्धच्छेद राशि का भाग दीएं, जो प्रमाण प्राय, तितने लोक मांडि परस्पर मुणे, बैनि यिक शरीर की स्थिति विषे .अन्योन्याभ्यस्त विर्षे राशि हो है । सो यह मौदारिक शरीर की स्थिति संबंधी अन्योन्याभ्यस्त राशि ते असंख्यात लोक गुणा जानना। काहे त ? जाते अंतर्मुहूर्त करि भाजित तीन पल्य ते अंतर्मुहर्त करि भाजित तेतीस सागर कौं एक सौ दश कोडाकोडी का गुणकार संभव
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