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सम्यग्ज्ञानन्द्रिका भाषाटोका !
न च सत्यभूषायुक्तं यत्तु मनस्तदसत्यभूषामनः । यो योगस्तेन भवेत् असत्यमृषा तु मनोयोगः ॥२१९॥
टीका जो मन सत्य र भूषा कहिए असत्य, तीहि करि युक्त न होइ बहुरि सत्य असत्य का निर्णय करि रहित जो अनुभय पदार्थ, ताके ज्ञान उपजावने की शक्तिरूप जो भाव मन, तींहि करि निपज्या जो प्रवर्तनरूप योग, सो सत्य-असत्य रहित अनुभव मनोयोग कहिए । अँसें च्यारि प्रकार मनोयोग कह्या ११२१६||
वस विहसच्चे वयणे, जो जोगो सो दु सच्चर्वाचिजोगो । तव्विवरीओ मोसो, जाणुभयं सच्चमोसो ति ॥ २२० ॥
afare वचने, यो योगः स तु सत्यवचोयोगः । तद्विपरीतो भूषा, जानीहि उभयं सत्यमुषेति ॥ २२० ॥
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टीका सत्य अर्थ का कहनहारा सो सत्य वचन है । जनपद ने आदि देकरि दस प्रकार सत्यरूप जो पदार्थ, तींहि विषै वचनप्रवृत्ति करने की समर्थ, स्वरनामा नामकर्म के उदय ते भया भाषा पर्याप्त करि निपज्या, जो भाषा वर्गणा श्रालंबन लौएं श्रात्मा के प्रदेशनि विषै शक्तिरूप भाववचन करि उत्पन्न भया जो प्रवृत्तिरूप विशेष, सो सत्यवचन योग कहिए ।
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बहुरि तीहियों विपरीत श्रसत्य पदार्थ विर्षे वचनप्रवृत्ति को कारण जो भाव वचन, तींहि करि जो प्रवर्तनरूप योग होइ, सो असत्य वचन कहिए ।
बहुरि कमंडलु विषै यहु घट है इत्यादिक सत्य-असत्य पदार्थ विषै वचन प्रवृत्ति कौं कारण जो भाव वचन, तींहि करि जो प्रवर्तनरूप योग होइ, सो उभय वचन योग कहिए; असे हे भव्य ! तू जानि ।
जो णेव सच्चमोसो, सो जाण असच्चमोसवचिजोगो । श्रमणाणं जा भासा, सण्णीणामंतरपी यादी २ ||२२१||
यो नैव सत्यभूषा, स जानीहि असत्यमुपानयोयोगः श्रमनसां था. भाषा, संज्ञिनामामंत्रण्यादि: ॥२२१॥
१.
पखंडागम-धवला पुस्तक १, पृ. २८ गा. सं. १५८ २. - पटूखंडागम - वदला पुस्तक १. पृ. २०८. सं. १५६