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सम्मानचन्द्रिका माषा टीका ] जानने । बहुरि स्कंध, जो पेड, सो ही है बीज जिनिका ते सालरि, पलास प्रादि स्कंधबीज जानने। बहुरि जे बोज ही ते लगें ते गेहू, शालि आदि बीजरुह जानने । बहुरि जे मल अादि निश्चित बीज की अपेक्षा ते रहित, आप आप उपजे ते सम्मछिम कहिए, समततै भए पुद्गल स्कंध, तिनि विष उपज, असे दोब आदि सम्मूछिम जानने ।
असे ए कहे ते सर्व ही प्रत्येक वनस्पती हैं । ते अनंत जे निगोद जीव, तिनके कायः' कहिए शरीर जिनिविर्षे पाइए असे 'अनंतकाय का हर प्रतिष्ठिस-प्रत्येक हैं । बहुरि चकार 6 अप्रतिष्ठित-प्रत्येक हैं। असे प्रतिष्ठित : कहिए साधारण शरीरनि करि प्राश्रित है, प्रत्येक शरीर जिनका ते प्रतिष्ठितःप्रत्येक-शारीर हैं । बहुरि तिनकरि आश्रित नाहीं हैं, प्रत्येक-शरीर जिनिका, ते अप्रतिष्ठितः प्रत्येक-शारीर हैं । असे ए मूलबीज आदि संमूछिम पर्यंत सर्व दोय-दोय अवस्था लोएं जानने । बहुरि कोऊ जानंगा कि इनिविर्षे संमूछिम के तौ संमूछिम जन्म होगा, अन्यक गर्भादिक होगा, सो नाहीं है । ते सर्व ही प्रतिष्ठित, अप्रतिष्ठित प्रत्येक-शरीरी जीव संलिम ही हैं । बहुरि प्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर की सर्वोत्कृष्ट भी अवगाहना घनांगुल के असंख्यात भाग मात्र ही है। तातै पूर्वोक्त मादा आदि देकर एक-एक स्कंध विष असंख्यात प्रतिष्ठित प्रत्येक शरीर पाइए हैं। कैसे? घनांगुल की दोय बार पल्य को असंख्यातबा भाग, अर नव बार संख्यात का भाग दीए, जो प्रमाण होई, तितर्ने क्षेत्र विर्षे जो एक प्रतिष्ठित प्रत्येक-शरीर होइ, तो संख्यात धनांगुल प्रमाणं पादा, मूला आदि स्कंध विः केते पाइए ? असें राशिक कीएं, लब्धं राशि दोय बरि पल्यं का असंख्यातवां भाग, दश बार संख्यात मांडि, परस्पर गुणे, जितना प्रमाण होइ, तितचे एक-एक प्रादा आदि स्कंध विर्षे प्रतिष्ठित प्रत्येक-शरीर पाइए हैं । बहुरि एक स्कंध विर्षे अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनस्पती जीवनि के शरीर यथासंभव असंख्यात भी होंइ, का संख्यात भी होइ । बहुरि जेते प्रत्येक शरीर हैं, तितने हो तहां वनस्पती जीव जानने; जातें तहां एक-एक शरीर प्रति एक-एक ही जीव होने का नियम है ।
बीजे जोरणीभदे, जीवो चंकमदि सो व अपणो बा। जे वि य मलादीया, ते पत्तेया. पढमवाए ॥१८७॥ बोसे योनीभूते, जीवः चामति स या अन्यो वा। .. येऽपि च मूलादिकास्ते प्रत्येकाः प्रथमतायाम् ॥१८.७॥