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Cantonespapes
[ मोम्मटसार जीवकाल्ड गापा १६६ अंडर जानने । बहुरि आवासनि का दृष्टांत कोशल प्रादि देश जानने ! जैसे भरतक्षेत्र विर्षे कोशल देश आदि अनेक देश पाइए, तैसें अंडर विर्षे प्रावास जानने । बहरि पुलवोनि का दृष्टांत अयोध्यादि नगर जानने। जैसे एक कोशलदेश विर्षे अयोध्या नगर आदि अनेक नगर पाइए, तैसें प्रावास विले पुलवी जानने । बहुरि शरीरनि का दृष्टांत अयोध्या के गृहादिक जानने ; जैसे अयोध्या वि मंदरादिक पाइए, तैसें पुलवी विर्षे बादर निगोद शरीर जानने । बहरि वा शब्द करि यहु दृष्टांत दीया । असे ही और कोऊ उचित दृष्टांत जानने ।
एगणिगोदसरीरे, जीवा दवप्पमाणदो दिट्ठा। सिद्धेहि अणंतगुरणा, सव्वेण वितीदकालेण ॥१६६॥ एकनिगोदशरोरे, जीवा प्रध्यप्रमाणतो दृष्टाः ।।
सिद्धरनंतगुणाः सर्वेण व्यतीतकालेन ॥१९॥ टीका - एक निगोद शरीर विर्षे वर्तमान निगोद जीव, ते द्रव्यप्रमाण, जो द्रव्य अपेक्षा संख्या, तात अनंतानंत है; सर्व जीव राशि कौं अनंत का भाग दीजिए, तामै एक भाग प्रमाण सिद्ध हैं । सो अनादिकाल ते जेते सिद्ध भए, तिनितें अनंता गुरणे हैं । बहुरि अवशेष बहुभाग प्रमाण संसारी हैं । तिनके असंख्यात भाग प्रमाण एक निगोद शरीर विषै जीव विद्यमान हैं, ते अक्षयानंत प्रमाण हैं । जैसैं परमागम विर्षे कहिए है।
बहुरि तैसे ही अतीतकाल के समान ते अनंत गुरणे हैं। इस करि काल अपेक्षा एक शरीर विषे निगोदजीवनि की संख्या कही ।
बहुरि जैसे ही क्षेत्र, भाव अपेक्षा तिनकी संख्या पागम अनुसारि जोडिए । तहां क्षेत्र प्रमाण ते सर्व प्रकाश के प्रदेशनि के अनंतवें भाग वा लोकाकाश के प्रदेशनि ते अनंत गुरण जानने ।
भाव प्रमाण ते केवल ज्ञान के अविभाग प्रतिच्छेदनि के अनंतवै भाग पर सर्वावधि ज्ञान गोचर जे भाव, तिनितें अनंत मुणे जानने । असे एक निगोद शरीर विर्षे जीवनि का प्रमाण कह्या ।
मा
१. षट्सपायम - पवना पुस्तक १, पृष्ठ २७३, गाया १४७ तथा पृष्ठ ३६६ गाथा २१० तथा थक्ला
पुस्तक ४, पृष्ठ ४७६ गाथा ४३.