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सम्यमानचस्तिका भाषाटीका 1
मुहां प्रश्न - जो छह महीना पर साठ समय के मांही छ: सै आर जीव कर्म नाश करि सिद्ध होइ, सो असे सिद्ध बधते जांहि संसारी घटते जाहि, तातै तुम सदा काल सिद्धनि ते अनंत गुणे एक निगोद शरीर विर्षे जीव कैसे कहो हो ? सर्व जीव राशि हैं अनंत गुणां अनागत काल का समय समूह है । सो यथायोग्य अनंतवां भाग प्रमाण काल गए, संसारी-राशि का नाश अर सिद्ध-राशि का बहुत्व होइ, ताते सर्वदा कालं सिद्धनि ते निगोद शरीर विषं निगोद जीवनि का प्रमाण अनंत गुणा संभव नाही ?
ताका समाधान -- कहै हैं - रे तर्किक भव्य! संसारी जीवनि का परिमारण प्रक्षयानंत है । सो केवली केवल ज्ञान दृष्टि करि पर थ तकेवली श्रु तज्ञान दृष्टि करि असें ही देखा है । सो यह सूक्ष्मता तर्क गोचर नाही; जातै प्रत्यक्ष प्रमाण पर आगम प्रमाण करि विरुद्ध होइ, सो तर्क अप्रमाण है जैसे किसी ने कहा अग्नि उरा नाहीं; जाते अग्नि है, सो पदार्थ है; जो जो पदार्थ है, सो सो उष्ण नाही; जैसे जल उष्ण नाहीं है; असी तर्क करी, परि यहु तर्क प्रत्यक्ष प्रमाण करि विरुद्ध है। अग्नि प्रत्यक्ष उष्ण है; सात यह तर्क प्रमाण नाहीं । बहरि किसीने कह्या धर्म है परलोक विर्षे दुःखदायक है; जाते धर्म है, सो पुरुषाश्रित है । जो जो पुरुषाश्रित है, सो सो परलोक विर्षे दुःखदायक है, जैसे अधर्म है; जैसी तर्क करी, परि यहु तर्क पागम प्रमाण करि खंडित है । आगम विर्षे धर्म परलोक विर्षे सुख दायक कहा है: ताते प्रमाण नहीं । असे ही जे केवली प्रत्यक्ष पर आगमोक्त कथन ताते विरुद्ध तेरो तर्क प्रमाण नाहीं ।
इहां बहुरि सर्क करौ--जो सकं करि विरोधी पागम कैसे प्रमाण होइ ?
ताका समाधान जो प्रत्यक्ष प्रमाण पर अन्य तर्क प्रमाण करि संभवता जो आगम, ताके अविरुद्वपरणां करि प्रमाणपना हो है । तौ सो अन्य तर्क कहा ? सो कहिए हैसर्व भव्य संसारी राशि अनंतकाल करि भी क्षय कौं प्राप्त न होइ; जाते यहु राशि प्रक्षयानंत है। जो जो अक्षयानंत है, सो सो अनंतकाल करि भी क्षयकौं प्राप्त न होइ । जैसे तीन काल के समयनि का परिमारग कह्या कि इतनां है, परि कबहूं अंत नाही वा सर्वद्रव्यनि का अगुरुलघु के अविभाग प्रतिच्छेद के समूह का परिमाण कह्या, परि अंत नहीं । तैसें संसारी जीवनी का भी प्रक्षयानंत प्रमाण जानना । जैसा यह अनुमान तैं पाया जो तर्क, सो प्रमाण है।