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[ गोम्मटसार काण्ड गस्या १६६
टीका - एकेंद्रिय जीव के स्पर्शन इन्द्रिय के विषय का क्षेत्र, बीस की कृति (वर्ग) च्यारि से धनुष प्रमाण जानना । बहुरि बेइन्द्रियादिक श्रसैनी पंचेंद्रिय पर्यंत के दु-दूर जानना, सो द्वींद्रिय के आठ से धनुष । वींद्रिय के सोला से धनुष । चतुरिद्रय बत्तीस से धनुष । असैनी पंचेंद्रिय के चीसठि से धनुष - स्पर्शन इंन्द्रिय का विषय क्षेत्र जानना । इतना इतना क्षेत्र पर्यंत विष्ठता जो स्पर्शनरूप विषय ताक जानें |
बहुरि द्वींद्रिय जीव के रसमा इन्द्रिय का विषय क्षेत्र, प्राठ की कृति चौसठ धनुष प्रसारण जानना । आगे दुणां-दुणा, सो तेइन्द्रिय के एक सौ प्रठाईस घतुष । चतुरिद्रिय के दोय से छप्पन धनुष । श्रसैनी पंचेंद्रिय कैं पांच से बारा धनुष - रसना इंद्रिय का विषयभूत क्षेत्र का परिमारण जानना ।
बहुरि ते इन्द्रिय के घाण इन्द्रिय का विषयभूत क्षेत्र दश की कृति, सौ धनुष प्रमाण जाना | आयें दूर-दूर्गा सो, चौइंद्री के दोय से धनुष । असैनी पंचेंद्रिय कें च्यारि से धनुष । घ्राण इन्द्रिय का विषयभूत क्षेत्र का प्रमाण जानना ।
afrat इन्द्रिय नेत्र इन्द्रिय का विषय क्षेत्र छियालीस घाटि तीन हजार योजन जानना । यातें दुर्गा पांच हजार नौ से आठ योजन असेनी पंचेंद्रिय के नेत्र इन्द्रिय का विषयभूत क्षेत्र जानना । बहुरि असैनी पंचेंद्रिय के श्रोत्र इन्द्रिय का विषय क्षेत्र का परिमाण ग्राठ हजार धनुष प्रमाण जानना ।
सणिस्स बार सोदे, तिन्हं णव जोयशागि चक्छुस्स । सत्तासहस्सा बेसदतेसट्ठिमदिरेया ॥ १६६ ॥
संज्ञिनो द्वादश धोत्रे, त्रयाणां नव योजनानि चक्षुषः । सप्तचत्वारिंशत्सहस्राणि द्विशतत्रिषष्ट्यतिरेकासि ॥। १६९ ।।
टोका - सैनी पंचेंद्रिय के स्पर्शन, रसना, वारा इनि तीनो इन्द्रियनि का नवनत्र योजन विषय क्षेत्र है । बहुरि नेत्र इन्द्रिय का विषय क्षेत्र सैतालीस हजार दोघं संतरेसठ योजन, बहुरि सात योजन का बोस भागकर अधिक है । बहुरि श्रोत्र इन्द्रिय का विषयक्षेत्र बारह योजन है !.