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सम्यानद्रिका भावाटीका ।
प्रागें विशेष संख्या कहै हैं । तहां प्रथम ही एकेंद्रिय जीवनि की संख्या कहै
तसहीरणो संसारी, एयक्खा ताण संखगा भागा। पुण्णारणं परिमारणं, संखज्जदिन अपुण्णारणं ॥१७६॥
सहीनाः संसारिणः, एकाक्षाः तेषां संख्यका भागाः ।
पूर्णानां परिमाणं, संख्येयकमपूर्णानाम् ॥ १७६ ॥ . टीका - सर्व जीव-राशि प्रमाण मैं स्यौं सिद्धनि का प्रमाण घटाए, संसारीराशि होइ । सोइ संसारी जीवनि का परिमाण मैं स्वौं त्रस जीवनि का परिमारण घटाएं, एकद्रिय जीवनि का परिमारण हो है । बहुरि तीहि एकोद्रिय जीवनि का परिमाण कौं संख्यात का भाग दीजिये, तामैं एक भाग प्रमाण तौ अपर्याप्त एकेंद्रियनि का परिमाण है । बहुरि अवशेष बहुभाग प्रमाण पर्याप्त एकेंद्रियनि का परिमाण है ।
आमैं एकेंद्रियनि के भेदनि की संख्या का विशेष कहै हैं - बादरसहमा तेसिं पुण्णापुण्णे ति छविहारणं पि । तस्कायमग्गरगाये, भणिज्जमारपक्कमो रगयो ।।१७७॥
बावरसूक्ष्मास्तेषा, पूर्णापूर्ण इति घडविधानामपि ।
तत्कायमार्गरणायां, भणिष्यमारणक्रमो शेयः ।।१७७।।
टीका -- सामान्य एकेंद्रिय राशि के बादर पर सूक्ष्म ए दोय भेद । बहुरि एक-एक भेद के पर्याप्त - अपर्याप्त ए दोय-झोय भेद -- असे च्यारि भए; तिनिका परिमारण आगें कायमार्गरणा विर्षे कहिएगा, सो अनुक्रम जानना सो कहिए हैं । सामान्य पनै एकेंद्रिय का जो परिमाण, ताकौं असंख्यात लोक का भाग. दीजिए, तामें एक भाग प्रमाण तो बादर एकद्रिय जानने । पर अवशेष बहभाग प्रमाण सूक्ष्म एकेद्रिय जानने । बहुरि बादर एकेंद्रियनिक परिमाण कौं असंख्यात लोक का भाग दीजिए। तामें एक भाग प्रमाण तो पर्याप्त हैं। अर अवशेष बहुभाग प्रमाण अपर्याप्त हैं । बहुरि सूक्ष्म एकेंद्रिय का परिमारण कौं संख्यात का भाग दीजिए, तामै एक भाग प्रमाण तो अपर्याप्त हैं । बहुरि अवशेष भाग प्रमाण पर्याप्त हैं । बादर विर्षे तौं पर्याप्त थोरे हैं; अपर्याप्त धने हैं । बहुरि सूक्ष्म विर्षे पर्याप्त धने हैं, अपर्याप्त थोरे हैं; असा भेद जानना।