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सम्यग्ज्ञानविका भाषाटीका ]
आगे स्थावरका के पांच भेद कहै हैं .
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पुढवी ग्राऊतेऊ, वाऊ कम्मोदरेण तत्थेव । पियवण्णचउक्कजुदी, तांगं देहो हवे नियमा ॥ १८२ ॥
पृथिव्यप्तेजोवायुकम्मोदयेन तत्रैव निजवर्णचतुष्कयुतस्तेषां देहो भवेनियमात् ॥१८२॥
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टीका - पृथ्वी, अप, तेज, वायु विशेष धरै जो नाम कर्म की स्थावर प्रकृतिके भेदरूप उत्तरोत्तर प्रकृति, ताके उदय करि जीवनि के तहां ही पृथिवी, आप, तेज, वायु रूप परिणये जे पुद्गलस्कंध, तिनि विषे अपने-अपने पृथिवी आदि रूप वर्णादिक चतुष्क संयुक्त शरीर नियम करि हो हैं । सें होतें पृथिवीकायिक अपकायिक, तेजकायिक, araatfoक जीव हो हैं ।
तहां पृथिवी विशेष लीए स्थावर पर्याय जिनकें होइ, ते पृथिवीकायिक कहिये । श्रथवा पृथिवी है काय कहिये शरीर जिनका, ते पृथिवीकायिक कहिए । जैसे ही अपकायिक, तेजकायिक, वातकायिक जानने । तिर्यंच गति, एकेंद्री जाति श्रदारिक शरीर, स्थावर काय इत्यादिक नामकर्म की प्रकृतिति के उदय अपेक्षा जैसी freक्ति संभव है ।
बहुरि जो जीव पूर्व पर्याय को छोडि, पृथ्वी विषै उपजने की सन्मुख भया होइ, सो विग्रह गति विषे अंतराल में यावत् रहै, तावत् वाक पृथ्वी जीव कहिये । जातें इहां केवल पृथिवी का जीव ही है, शरीर नाहीं ।
बहुरि जो पृथिवीरूप शरीर को घर होइ, सो पृथिवीकायिक कहिए । जातें वहां पृथिवी का शरीर वा जीव दोऊ पाइए है ।
बहुरि जीव तो निकसि गया होइ, वाका शरीर हो होइ, ताक पृथिवीकाय कहिये । जाते वहां केवल पृथिवी का शरीर ही पाइए है । अंसे तीन भेद जानते । बहुरि अन्य ग्रंथिति विषै च्यारि भेद कहे हैं। तहां ए तीनों भेद जिस विषं गर्भित होइ, सो सामान्य रूप पृथिवी जैसा एक भेद जानना । जातें पूर्वोक्त तीनों भेद पृथिवी के ही हैं । जैसे ही जीव श्रपुकायिक, अप्काय । बहुरि तेजः जीव, तेजः कायिक, तेजःकाय । बहुरि वातजीव, वातकायिक, वातकrवरूप तीन-तीन भेद जानने 1.