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[ गोगटसार जीवकाष गाथा १९७
३. सूच्यंगुल, ४. प्रतरांगुल, ५. धनांगुल, ६. जगत श्रेणी, ७. जगत्पतर ८. जगद्धन । तहां पल्य तीन प्रकार है - व्यवहार पल्य, उद्धार पल्य, अद्धा पल्य । तहां पहिला पल्य करि बालनि की संख्या कहिए है । दुसरा करि द्वीप-समुद्रनि की संख्या वरिगए है । तीसरा करि कर्मनि की वा देवादिकनि की स्थिति बरिणत है । अब परिभाषा का कथनपूर्वक तिनि पल्यनि का स्वरूप कहिए है ।
___जो तीक्ष्ण शस्त्रनि करि भी छेदने भेदने मोडने को समर्थ न हूजे असा है, 'बहुरि जल-अग्नि प्रादिनि करि नाश कौं न प्राप्त हो है; बहुरि एक-एक तो रस, वर्ण, गंध पर दोय स्पर्श असे पांच गुण संयुक्त है; बहुरि शब्दरूप स्क'ध का कारण हैं, आप शब्द रहित है ; बहुरि स्कंध रहित भया है, बहुरि आदि-मध्य-अंत जाका कह्या न जाइ असा है; बहुरि बहु प्रदेशनि के प्रभाव से अप्रदेशी है, बहुरि इंद्रियनि करि जानने योग्य नहीं है; बहुरि जाका विभाग न होइ असा है -- असा जो द्रव्य, सो परमाणु कहिए । सो परमाणु अंतरंग बहिरंग कारणनि लें अपने वर्ण, रस,गंध, स्पर्शनि करि सदा काल पूरे कहिए जुड़े पर गलै कहिए बिखरं, तब स्कंधवान आपकी करें है; तातें पुद्गल असा नाम है ।
बहुरि तिनि अनंतानंत परमाणुनि करि जो स्कंध होइ, सो अवसन्नासन्न नाम धारक है । बहुरि तातें सन्नासन्न, तृटरेणु, सरेण उत्तम भोगभूमिवालौं का बाल का अग्रभाग रथरेण, मध्यम भोगभूमिवालों का बाल का अग्रभाग, जघन्य भोगभूमिवालों का वाल का अग्रभाग, कर्मभूमिवालों का बाल का अग्रभाग, लीख, सरिसौं, यव, अंगुल ए बारह पहिला पहिला ते क्रम करि आठ-आठ गुणे हैं ।
तहां अंगुल तीन प्रकार है उत्सेधांगुल, प्रमाणांगुल, पात्मांगुल । तहां पूर्वोक्त कम करि उपज्या सो उत्सेधांगुल है । याकरि नारकी, तिर्यन्त्र, मनुष्य, देवनि के शरीर वा भवनवासी आदि च्यारि प्रकार देवनि के नगर पर मंदिर इत्यादिकनि का प्रमाण वर्णन करिए है । बहुरि तिरा उत्सेधांगुल ते पांच सौ गुणा जो भरत क्षेत्र का अक्सपिरणी काल विर्षे पहला चक्रवर्ती का अंगुल है; सोई प्रमाणांगुल है । याकरि द्वीप, . समुद्र, पर्वत, वेदी, मदी, कुड, जगती, वर्ष इत्यादिकनि का प्रमाण वरिगए है । बहुरि भरत,ऐरावत क्षेत्र के मनुष्यनि का अपने-अपने वर्तमान काल विर्षे जो अंगुल सो पात्मांगुल है । याकरि भारी, कलश, आरसा, धनुष, ढोल, जूडा, शय्या, गाडा, हल,भूसल, शक्ति, शौल, सिंहासन, बाण, चमर, दुदुभि, पीठ, छत्र, मनुष्यनि के मंदिर
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