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टीका 1
[ २९१
बहर कषाय मार्गण नि प्यारो
निमित्त पर्यंत कर मनोयोगवत् पर दोऊ उपथभक वा क्षपक वा सूक्ष्म लोभ पर कषाय इनिका सामान्यवत् काल है ।
बहुरि ज्ञान मार्गणा विषे तीन कुज्ञाननि विषै वा पांच सुज्ञाननि विषे अपने-अपने retaraft का सामान्यवत् काल है। विशेष इतना - विभंग विषे मिध्यादृष्टि का काल - देशोन तेतीस सागर है ।
बहुरि संयम मार्गणा विषै सात भेदनि विषै अपने-अपने गुणस्थाननिका सामान्यवत् काल हैं ।
बहुरि दर्शन मार्गणा विषे व्यारि मेदनि विषै अपने-अपने गुणस्थाननि का सामान्यवत् काल है । विशेष इतना चक्षुदर्शन विषै मिथ्यादृष्टि का उत्कृष्ट काल दोय हजार सागर है ।
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बहुरि लेश्या मार्गणा विषे छह भेदनि विषे वा प्रलेश्यानि विषै अपने-अपने गुणस्थानft का सामान्यवत् काल है । विशेष इतना - कृष्ण, नील, कापोत विषै मिथ्यादृष्टि का उत्कृष्ट काल क्रम ते साविक तेतीस सतरह, सात सागर अर असंयत का उत्कृष्ट काल क्रम तें देशोन तेतीस, सतरह, सात सागर है । पर पीत पद्म विषै frentदृष्टि वा असंयत का उत्कृष्ट काल कम तैं दोय, अठारह सागर है। संयतासंयत का जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त काल है । बहुरि शुक्ल लेश्या विषे मिध्यादृष्टि का उत्कृष्ट काल साधिक इकतीस सागर, संयतासंयत का जघन्य एक समय, उत्कृष्ट काल है ।
अंत
बहुरि भव्य मार्गणा विषै भव्य विषै मिथ्यादृष्टि का अनादि सांत वा सादि सांत काल है । तहां सादि सांत जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट देशोन अर्ध पुद्गल परिवर्तन मात्र है । शेषन का सामान्यवत् काल है । अभव्य विषं अनादि अनंत काल है ।
बहुरि सम्यक्त्व मागेगा विषै छहीं भेदनि विषै अपने-अपने गुणस्थान लिए का सामान्यन्वत् काल है । विशेष इतवा - उपशम सम्यक्त्व विषै प्रसंयत, संयता सत का जघन्य वा उत्कृष्ट काल अंतर्मुहूर्त मात्र है
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..बहुरि संज्ञी मार्गणा विषै संज्ञी विषे मिथ्यादृष्टि आदिनिवृत्ति कर पर्य का पुरुष वेदवत् अवशेषनि का सामान्यवत् काल है । असंज्ञी विषे मिथ्यादृष्टि