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सम्यानचनिया भाषाटीका
प्राग देवगति के जीवनि की संख्या च्यारि गाथानि करि कहै हैं - तिण्णिसयजोयणाणं, बेसदछप्पण्णभंगुलाणं च । कदिहदपदरं वेंतर, जोइसियारणं च परिमाणं ॥१६०॥ त्रिशरयोजनामा द्विशतषट्पंचाशदंगुलानां च ।
कृतिहतप्रतरं व्यंसरज्योतिष्काणां च परिमाणम् ॥१६॥
टीका - तीन सै योजन के वर्ग का भाग जगत्प्रतर कौं दीएं, जो परिमाए होइ, तितना व्यंतरमि का प्रमाण जानना । तीन से योजन लंबा, तीन से योजन चौड़ा, एक प्रदेश ऊंचा ऐसा क्षेत्र का जितने आकाश का प्रदेश होइ, ताका भाग दीजिए, सो याका प्रतरांगुल कीएं, पैसठ हजार पांच से छत्तीस कौं इक्यासी हजार कोडि गुणां करिए इतने प्रतरांगुल होइ, तिनिका भाग जगत्प्रतर कौं दीए व्यंतरनि का प्रमाण होइ है।
बहुरि दोय से छप्पन अंगुल के वर्ग का भाग जगत्प्रतर कौं भाग दीएं, जो परिमाण धावै, लितना ज्योतिषोनि का परिमाण जानना । दोब सै छप्पन अंगुल चौड़ा इतना ही लम्बा एक प्रदेश ऊंचा, असा क्षेत्र का जितना आकाश का प्रदेश होइ ताका भाग दीजिए, सो याका प्रतरांगुल पंसठि हजार पांच से छत्तीस है । ताका भाग जगत्पतर कौं दीएं ज्योतिषी देवनि का परिमारग हो है ।
घणगुलपढमपर, सदियपदं सेढिसंगररां कमसो। . भवरणे सोहम्मबुगे, देवारणं होदि परिमारणं ॥१६१॥ धनांगुलप्रथापदं, तृतीयय श्रेणिसंगणं क्रमशः ।
भवने सौधर्मद्विके, देवानां भवति परिमाणम् ॥१६१॥ टीका - धनांगुल का जो प्रथम वर्गमूल, तिहिने जगत्त्रेणी करि गुणें, जो परिमाण होइ, तितने भवनवासीनि का परिमाण जानना ।
बहुरि घनांगुल का जो तृतीय वर्गमूल तिहिनें जगत्श्रेणी करि गुणें जो परिमारण होइ, तितने सौधर्म अरु ईशान स्वर्ग का वासी देवनि का परिमाण जानना ।