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[ गोम्मटसर जीवाण्ट वा १४४-१४५
सत्तदिणाछम्मासा, वासपुधत्तं च बारसमुहुत्ता । पल्लासंखं तिष्हं, वरमवरं एगसमयो दु ॥१४४॥
उपशमसूक्ष्माहारे, वैविकमिश्नरापर्याप्तेि । सास सम्यक्त्वे मिश्र, सांतरका मार्गणा अष्ट ॥ १४३ ॥
टीका नाना जीवति की अपेक्षा विवक्षित गुणस्थान वा मार्गास्थान नैं छोड, अन्य कोई गुणस्थान वा मार्गणास्थान में प्राप्त होइ, बहुरि उस ही विवक्षित गुणस्थान वा मार्गणास्थान कौं यावत् काल प्राप्त न होइ, तिसकाल का नाम अंतर है |
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सप्तदिनानि षण्मासा, वर्षपृथक्त्वं च द्वादश मुहूर्ताः । पल्यासंख्यं प्रयाणां वरमवरमेकसमयस्तु ॥ १४४ ॥
सो उपशम सम्यग्दृष्टी जीवनि का लोक विषे नाना जीव अपेक्षा अंतर सात दिन है । तीन लोक विषै कोऊ जीव उपशम सम्यक्त्वी न होइ तो उत्कृष्टपने सात साईं न हो, पीछे कोऊ होय ही होय । ऐसे ही सब का अंतर जानना ।
बहुरि सूक्ष्म सांवराय संयमी, तिनिका उत्कृष्ट अंतर छह महीना है । पीछे कोऊ होय ही होय ।
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बहुरि आहारक पर श्राहारकमिश्र काययोगवाले, तिनिका उत्कृष्ट अंतर वर्ष पृथक्त्व का है। तीन तें ऊपर अर नव तें नीचे पृथक्त्व संज्ञा है, तातें यहां तीन वर्ष के ऊपर अर नव वर्ष के नीचे अंतर जानना । पीछे कोई होय ही होय ।
बहुरि क्रियिकमिश्र काययोगवाले का उत्कृष्ट अंतर बारह मुहूर्त का है, पीछे कोऊ होय ही होय ।
बहुरि लब्धि पर्यातक मनुष्य पर सासादन गुणस्थानवर्ती जीव श्रर मिश्र गुणस्थानवर्ती जीव, इनि तीनों का अंतर एक-एक का पल्य के श्रसंख्यातवें भाग मात्र जानना, पीछे कोई होय ही होय । भैंसें ए सांतर मार्गणा आठ हैं । इति सबनि का जघन्य अंतर एक समय जानना ।
पढमुवसमसहिदाए, विरदाविरबोए चोहसा दिवसा ।
विरदीए पण्णरसा, विरहिदकालो दु बोधथ्यो ।। १४५ ॥ ।