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attafat भाटीका
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परिमाण होइ, तीहि प्रमाख शलाका, विरलन, देय करि क्रम तैं पूर्वोक्त विधि करि शलाकाय निष्ठापन कीयें जो कोई मध्यम अनंतानंत का भेदरूप महा परिमाण होइ, तिस परिमाण को केवलज्ञान शक्ति का प्रविभाग प्रतिच्छेदनि का समूहरूप परिमाण विषै घटाइ, पीछे ज्यू का त्यू मिलाइये, तब केवलज्ञान के अविभाग प्रतिच्छेदन का प्रमाण स्वरूप उत्कृष्ट अनंतानंत होह है ।
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इहां प्रश्न जो पूर्वोक्त परिमारण कौं पहिले केवलज्ञान में सौ काढि पीछे फेरि मिलाया सो कौन कारण ?
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लाका समाधान
केवलज्ञान का परिमाण असा नाहीं जो पूर्वोक्त परिमाण के गुरणनादि क्रम करि जाण्या जाय। हर उस परिमाण को केवलज्ञान में मिलाइये तो केवलज्ञान अधिक प्रमाण होइ, सो है नाहीं । बहुरि किछू न कहिए तो गणित विषै संबंध टूटें, तातें पूर्वोक्त परिमारण कौं पहिले केवलज्ञान में सौं घटाइ, पीछे मिलाइ, केवलज्ञान मात्र उत्कृष्ट अनंतानंत का है । से ये इकईस भेद संख्यामान के कहे ।
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संख्या के विशेषरूप से चौदह धारा, तिनिका कथन कीजिए है १. सर्व धारा, २. समधारा, ३. विषमधारा ४ कृतिधारा, ५. प्रकृति धारा ६. धनधारा, ७. अधनधारा, म कृति मात्रिकधारा, ६. प्रकृति मात्रिकधारा, १० घन मातृकधारा ११. अधन मातृकधारा १२. द्विरूप वर्गवारा, १३. द्विरूपवनधारा, १४. द्विरूपधनाधनधारा - से ये चौदह धारा जाननी ।
तहां कहे जे सर्व संख्यातादि भेद, ते एक आदि तें होंहि असे जे सर्व संख्यात विशेषरूप सो सर्वधारा है ।
अवशेष तेरह धारा याही विषै उत्पन्न जाननी । वा धारा का प्रथम स्थान . एक प्रमाण, दूसरा स्थान दोय प्रमाणं, तीसरा स्थान तीन प्रमाणे असे एक-एक बधता केवलज्ञान पर्यन्त जानने । केवलज्ञान शब्द करि उत्कृष्ट अनंतानंत जानने । इस धारा विषे सर्व ही संख्या के विशेष आये, ताते याके सर्वस्थान केवलज्ञान परिमारग जानने ।
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बहुरि जिस विषै समरूप संख्या के विशेष पाइये, सो समधारा है । याका आदि स्थान दोय. दूसरा स्थान व्यारि, तीसरा स्थान छह, जैसे दोय- दोय बघता